एनआईटी राउरकेला ने पानी में फार्मास्यूटिकल के प्रदूषक तत्वों की रोकथाम के लिए जैव-आधारित प्रक्रिया विकसित किया
Abhay Pratap Singh | March 13, 2025 | 04:22 PM IST | 2 mins read
इस नवाचार का लक्ष्य फार्मास्यूटिकल के प्रदूषक तत्वों की बढ़ती समस्या की रोकथाम के लिए स्थायी समाधान पेश कर मनुष्य और जल जीवन दोनों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
नई दिल्ली: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (NIT Rourkela) के शोधकर्ताओं ने जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर प्रो अंगना सरकार के मार्गदर्शन में काम करते हुए अपशिष्ट जल में फार्मास्यूटिकल के प्रदूषक तत्वों की रोकथाम की प्रक्रिया विकसित की है। दो चरणों की इस प्रक्रिया में एडजार्प्शन और बायोडिग्रेडेशन को जोड़ा गया है, ताकि एंटीबायोटिक्स, गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSID) जैसे फार्मास्युटिकल कम्पाउंड और सिंथेटिक रंगों के प्रदूषक तत्वों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला जा सके।
यह शोध जर्नल ऑफ वॉटर प्रोसेस इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया था। प्रोफेसर अंगना सरकार ने अपनी शोध टीम डॉ कस्तूरी पोद्दार, डॉ देबप्रिया सरकार (शोध स्नातक) और प्रीतम बाजीराव पाटिल (रिसर्च स्कॉलर) के साथ संयुक्त रूप से यह शोध पत्र लिखा है। इस मॉडल का फार्मास्युटिकल कम्पाउंड के साथ कार्य प्रदर्शन समान संरचना वाले अन्य अणुओं पर भी लागू किया जा सकता है।
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “सिंथेटिक अपशिष्ट जल जिसमें एनएसएआईडी, एंटीबायोटिक्स और फार्मास्यूटिकल के रंग सभी मिले होते हैं, वहां इस प्रक्रिया में प्रदूषक तत्वों के निष्कासन की उत्कृष्ट क्षमता दिखी। इसमें फार्मास्यूटिकल के रंगों और दर्द निवारक दवाओं की बायोडिग्रेडेशन क्षमता 95 प्रतिशत से अधिक थी। बायोचार एडजॉर्प्शन की प्रक्रिया भी बहुत प्रभावी साबित हुई। यह पानी से 99.5 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक्स हटाने में सक्षम पाई गई।”
एनआईटी राउरकेला में जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर अंगना सरकार ने इस अनुसंधान का महत्व बताते हुए कहा, ‘‘हमारी नवीन एकीकृत प्रक्रिया एंटीबायोटिक्स, एनएसआईडी और रंगों सहित विभिन्न फार्मास्युटिकल प्रदूषक तत्वों के निष्कासन में सफल रही है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है क्योंकि इसमें जैविक पद्धतियों का उपयोग किया गया है और किसी विषैले इंटरमीडियरी का उपयोग नहीं किया गया है।”
उन्होंने आगे कहा कि, इस प्रक्रिया से बायोडिग्रेडिंग बैक्टीरिया सुरक्षित रहते हैं, विषैले बायप्रोडक्ट कम होते हैं और फार्मास्यूटिकल के प्रदूषक तत्वों के पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है। वर्तमान में इस ट्रीटमेंट पर लगभग 2.6 रुपये प्रति लीटर का खर्च है जो और कम होगा। इसके लिए प्रक्रिया का अनुकूलन करना होगा और इसे ट्रीटमेंट की वर्तमान व्यवस्था में तृतीय चरण के रूप में एकीकृत करना होगा।
शोधकर्ताओं के सुझाव के अनुसार, यह प्रक्रिया गैर विषैली, सतत उपयोगी और लागत प्रभावी है। निकट भविष्य में ही फार्मास्यूटिकल उद्योगों के सहयोग से इसके व्यापक उपयोग की संभावना दिखती है। प्रेस रिलीज में दी गई जानकारी के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट की फंडिंग साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (इम्प्रिंट-2: अनुसंधान नवाचार और प्रौद्योगिकी का प्रभावीकरण, भारत सरकार की योजना के तहत) ने की है। यह अनुसंधान कैडिला फार्मास्युटिकल लिमिटेड, अहमदाबाद के सहयोग से किया गया है।
अगली खबर
]विशेष समाचार
]- Govt in Lok Sabha: केवीएस में 10,173 पद रिक्त; 2014 से भर्ती और कॉन्ट्रैक्ट टीचरों का साल-वार विवरण जारी
- एसएमवीडीआईएमई में हिंदुओं के लिए आरक्षण और मुस्लिम छात्रों को स्थानांतरण करने की मांग को लेकर प्रदर्शन
- IIM Indore Admission Guidelines 2026-28: आईआईएम इंदौर ने पीजीपी एडमिशन गाइडलाइंस जारी की, पात्रता मानदंड जानें
- IIT Bombay News: महाराष्ट्र सरकार आईआईटी बॉम्बे का नाम बदलने के लिए केंद्र को लिखेगी पत्र, सीएम ने दी जानकारी
- दिल्ली का भलस्वा स्लम: आधार कार्ड और गंदगी से गुम हुई शिक्षा
- Nobel Prize in Economics 2025: जोएल मोकिर, फिलिप एगियन और पीटर हॉविट को मिलेगा अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार
- भारत में 33 लाख से अधिक छात्र एकल-शिक्षक स्कूलों पर निर्भर, उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक नामांकन
- Nobel Peace Prize 2025: वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो को मिलेगा नोबेल शांति पुरस्कार, 10 दिसंबर को समारोह
- Nobel Prize in Chemistry 2025: सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन, उमर एम याघी को मिलेगा केमिस्ट्री का नोबेल प्राइज
- Nobel Prize in Physics 2025: जॉन क्लार्क, माइकल एच डेवोरेट और जॉन एम मार्टिनिस को मिला भौतिकी का नोबेल प्राइज