अनुसंधान, आंकड़ा संग्रह और विश्लेषण से जुड़ी यह परियोजना मिश्रित-पद्धति अनुसंधान की समझ को और सुदृढ़ करने के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक अनुसंधान की सैद्धांतिक अवधारणाओं को व्यावहारिक परिस्थितियों में लागू करने के लिए टीम के अनुसंधान और विश्लेषणात्मक कौशल का उपयोग करेगी।
Abhay Pratap Singh | July 16, 2025 | 10:43 AM IST
नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) के शिक्षा संकाय के शैक्षिक अध्ययन विभाग (DES) को असम की चाय जनजातियों के सशक्तीकरण के लिए भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) द्वारा वित्तपोषित 1.38 करोड़ रुपए का लोंगिट्युडिनल रिसर्च प्रोजेक्ट मिला है। यह परियोजना सामाजिक एवं मानव विज्ञान में आईसीएसएसआर लोंगिट्युडिनल स्टडीज के द्वितीय आह्वान के अंतर्गत है।
“डिजिटल और गैर-डिजिटल कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से असम की चाय जनजातियों का सशक्तीकरण” शीर्षक वाली इस परियोजना का उद्देश्य असम में चाय बागान श्रमिकों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण पर कौशल विकास पहलों के प्रभाव की जांच करना है। जामिया के कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ़ और कुलसचिव प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिजवी ने कहा कि यह पूर्वोत्तर पर शोध अध्ययनों को आगे बढ़ाने में जामिया की गहरी रुचि को बढ़ावा देगा।
आधिकारिक बयान के मुताबिक, “पिछले सप्ताह 8 जुलाई को प्रो आसिफ और प्रो रिजवी ने जामिया में पूर्वोत्तर के छात्रों के लिए 400 बेड वाले छात्रावास के निर्माण पर चर्चा करने के लिए केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास और शिक्षा राज्य मंत्री डॉ सुकांत मजूमदार के साथ एक बैठक की थी। मंत्री ने इस परियोजना के लिए अपना पूर्ण सहयोग देने का वादा भी किया था।”
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डॉ काजी फिरदौसी इस्लाम को इस परियोजना का समन्वयक नियुक्त किया गया है, जबकि शैक्षिक अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो कौशल किशोर; जामिया मिलिया इस्लामिया के शिक्षा संकाय के पूर्व अध्यक्ष एवं डीन तथा एसजीटी विश्वविद्यालय के सलाहकार प्रो अहरार हुसैन; गुवाहाटी विश्वविद्यालय की प्रो निवेदिता गोस्वामी; शैक्षिक अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ समीर बाबू एम और शैक्षिक अध्ययन विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ जेबा तबस्सुम परियोजना निदेशक के रूप में कार्य करेंगी।
प्रो आसिफ ने कहा, “असम की चाय जनजातियों से एकत्रित प्रत्यक्ष आंकड़ों से प्राप्त निष्कर्ष उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने, आजीविका के अवसरों में सुधार लाने और उनकी कार्य-प्रणालियों की गहन जानकारी प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। साथ ही इन समुदायों के जीवन, परंपराओं और अनुभवों के समृद्ध, विशिष्ट और मूल्यवान सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों पर भी प्रकाश डालेंगे।”
प्रो रिजवी ने कहा, “ऐसी शोध परियोजना न केवल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस पर अभी तक कम अध्ययन हुआ है, बल्कि इसलिए भी कि इसके निष्कर्षों में इस क्षेत्र में भविष्य की नीति और विकास परियोजनाओं को आकार देने की क्षमता है। जामिया सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक और भाषाई रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों के जीवन पर शिक्षण और शोध करने के लिए प्रतिबद्ध है।”