IIT Guwahati के शोधकर्ताओं ने स्तन कैंसर के इलाज के लिए इंजेक्टेबल हाइड्रोजेल विकसित किया
Santosh Kumar | January 2, 2025 | 02:52 PM IST | 2 mins read
स्तन कैंसर परीक्षणों से पता चला है कि डॉक्सोरूबिसिन युक्त हाइड्रोजेल के एक इंजेक्शन से 18 दिनों में ट्यूमर का आकार 75% कम हो गया।
नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी और बोस इंस्टीट्यूट कोलकाता के शोधकर्ताओं ने कैंसर के इलाज के लिए इंजेक्टेबल हाइड्रोजेल बनाया है। यह हाइड्रोजेल दवा को सीधे ट्यूमर तक पहुंचाता है, जिससे पारंपरिक उपचार के साइड इफेक्ट कम हो जाते हैं। इस शोध के निष्कर्ष रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री की पत्रिका मैटेरियल्स होराइजन्स में प्रकाशित हुए हैं।
इस शोधपत्र के सह-लेखक प्रोफेसर देबप्रतिम दास, आईआईटी गुवाहाटी से उनके शोधार्थी तनुश्री दास और ऋत्विका कुशवाहा तथा सहयोगी बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता से डॉ. कुलदीप जाना, सत्यजीत हलदर और अनूप कुमार मिश्रा हैं।
हाइड्रोजेल कैसे काम करता है?
इस संबंध में प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि कैंसर के मौजूदा उपचार जैसे कि कीमोथेरेपी और सर्जरी में कई समस्याएं हैं। सर्जरी के जरिए हर ट्यूमर को निकालना संभव नहीं है, खासकर तब जब ट्यूमर आंतरिक अंगों में हो।
साथ ही, कीमोथेरेपी न केवल कैंसरग्रस्त बल्कि स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाती है और इसके गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं। हाइड्रोजेल पानी पर आधारित संरचनाएं हैं जो तरल को अवशोषित और संरक्षित कर सकती हैं।
हाइड्रोजेल कैंसर रोधी दवाओं को संग्रहीत करता है और ट्यूमर के आस-पास के विशिष्ट वातावरण के अनुसार दवाओं को धीरे-धीरे छोड़ता है। यह शरीर के तरल पदार्थों में अघुलनशील रहता है और इंजेक्शन की जगह पर ही टिका रहता है।
संस्थान के प्रोफेसर दास ने क्या कहा?
यह ट्यूमर में पाए जाने वाले ग्लूटाथियोन नामक अणु के उच्च स्तर पर प्रतिक्रिया करता है और दवाओं को केवल ट्यूमर में ही छोड़ता है। इससे स्वस्थ ऊतकों को कम नुकसान होता है और साइड इफ़ेक्ट भी कम होते हैं।
आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर देबप्रतिम दास ने कहा कि स्तन कैंसर के परीक्षणों से पता चला है कि डॉक्सोरूबिसिन युक्त हाइड्रोजेल के एक इंजेक्शन से 18 दिनों में ट्यूमर का आकार 75% कम हो गया।
यह हाइड्रोजेल केवल ट्यूमर वाली जगह पर ही सक्रिय था, जिससे अन्य अंगों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा। एक खुराक से ट्यूमर के आकार में अधिकतम कमी का पता लगाने के लिए आगे के अध्ययन चल रहे हैं।
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