IIT Guwahati: आईआईटी गुवाहाटी ने मीथेन, कॉर्बन डाइऑक्साइड को जैव ईंधन में बदलने की टेक्नोलॉजी विकसित की

जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की क्षमता के साथ यह प्रगति एक स्वच्छ और हरित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

ग्रीनहाउस गैस मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 27 से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है। (स्त्रोत-आधिकारिक एक्स/आईआईटी गुवाहाटी)
ग्रीनहाउस गैस मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 27 से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है। (स्त्रोत-आधिकारिक एक्स/आईआईटी गुवाहाटी)

Press Trust of India | December 9, 2024 | 10:41 PM IST

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी (IIT Guwahati) के शोधकर्ताओं ने मीथेनोट्रोफिक बैक्टीरिया का उपयोग करके मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को स्वच्छ जैव ईंधन में बदलने की एक उन्नत जैविक विधि विकसित की है। अधिकारियों ने सोमवार को बताया कि यह अभिनव दृष्टिकोण टिकाऊ ऊर्जा समाधान और जलवायु परिवर्तन दुष्प्रभावों का शमन करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है।

एल्सेवियर की एक प्रमुख पत्रिका ‘फ्यूल’ में प्रकाशित यह शोध दो महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों ग्रीनहाउस गैसों का हानिकारक पर्यावरणीय प्रभाव और जीवाश्म ईंधन भंडार में कमी को संबोधित करता है। आईआईटी गुवाहाटी के बायोसाइंसेज एवं बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर देबाशीष दास ने बताया कि ग्रीनहाउस गैस मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 27 से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है और वैश्विक तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिग) में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

उन्होंने कहा, ‘‘मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को तरल ईंधन में बदलने से उत्सर्जन कम हो सकता है और अक्षय ऊर्जा मिल सकती है, लेकिन मौजूदा रासायनिक विधियां ऊर्जा-गहन, महंगी हैं और विषैले उप-उत्पाद उत्पन्न करती हैं, जिससे उनकी मापनीयता सीमित हो जाती है।’’ दास ने कहा कि उनकी टीम ने एक पूरी तरह से जैविक प्रक्रिया विकसित की है जो हल्की परिचालन स्थितियों के तहत मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को बायो-मेथनॉल में बदलने के लिए एक प्रकार के मीथेनोट्रोफिक बैक्टीरिया का उपयोग करती है।

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प्रोफेसर देबाशीष ने कहा, ‘‘पारंपरिक रासायनिक विधियों के विपरीत, यह प्रक्रिया महंगे उत्प्रेरकों की आवश्यकता को समाप्त करती है, विषैले उप-उत्पादों से बचती है और अधिक ऊर्जा-कुशल तरीके से संचालित होती है।’’ शोधकर्ताओं ने दावा किया कि इस विधि से कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन सल्फाइड और धुएं के उत्सर्जन में 87 प्रतिशत तक की कमी आई है।

दास के अनुसार, यह शोध एक बड़ी सफलता है क्योंकि यह दर्शाता है कि मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड पर पलने वाले बैक्टीरिया से प्राप्त बायो-मेथनॉल जीवाश्म ईंधन का एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘यह पर्यावरण और आर्थिक रूप से व्यवहार्य समाधान है, जो उत्सर्जन में कमी लाने में योगदान करते हुए सस्ते संसाधनों का उपयोग करता है।’’

जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की क्षमता के साथ यह प्रगति एक स्वच्छ और हरित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रक्रिया तेल और गैस, रिफाइनरियों और रासायनिक विनिर्माण सहित महत्वपूर्ण उद्योगों को कॉर्बन-मुक्त करने की अपार क्षमता प्रदान करती है, जो अधिक टिकाऊ भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती है।’’

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