मदरसों में व्यापक शिक्षा की कमी, गैर-मुस्लिमों को इस्लामी तालीम, NCPCR का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा कि मदरसों में बच्चों को औपचारिक और उचित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल रही है।
Santosh Kumar | September 11, 2024 | 02:41 PM IST
नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने 'यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को रद्द करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए कहा कि मदरसों में बच्चों को दी जा रही शिक्षा व्यापक नहीं है, जो शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई एक्ट), 2009 के नियमों के खिलाफ है। इससे पहले 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को रद्द करते हुए छात्रों को नियमित स्कूलों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था।
आयोग ने दायर अपने हलफनामे में आगे कहा कि मदरसों में बच्चों को औपचारिक और उचित गुणवत्ता वाली शिक्षा नहीं मिल रही है। मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत भी नहीं आते हैं, इसलिए वहां के बच्चे आरटीई अधिनियम के तहत मिलने वाले लाभ भी नहीं ले पाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे न केवल उचित शिक्षा से वंचित हैं, बल्कि उन्हें स्वस्थ वातावरण, मध्याह्न भोजन, वर्दी और प्रशिक्षित शिक्षक जैसी सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं। कई शिक्षकों की नियुक्ति केवल धार्मिक ग्रंथों के ज्ञान के आधार पर की जाती है।
गैर-मुस्लिम बच्चों को इस्लामी तालीम
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, एनसीपीसीआर के हलफनामे में कहा गया है कि ये संस्थान गैर-मुस्लिमों को इस्लामी धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 28(3) के खिलाफ है। इसके कारण मदरसे में पढ़ने वाला बच्चा सामान्य स्कूली पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से भी वंचित रह जाएगा।
आयोग ने कहा कि मदरसे न केवल असंतोषजनक और अपर्याप्त शिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि उनका कामकाज भी मनमाना है। उनमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया का पूरी तरह से अभाव है।
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जानिए क्या है पूरा मामला?
बता दें कि 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 22 मार्च को दिए उस फैसले पर रोक लगा दी थी जिसमें हाईकोर्ट ने ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता व मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया था।
कोर्ट ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष कि मदरसा बोर्ड की स्थापना धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करती है, सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्र प्रभावित होंगे और इसे सही मानते हुए छात्रों को दूसरे स्कूल में स्थानांतरित करने का निर्देश उचित नहीं है।
अदालत ने कहा कि अगर चिंता यह है कि मदरसों के छात्रों को अच्छी शिक्षा मिले तो इसका समाधान मदरसा एक्ट को खत्म करना नहीं है, बल्कि उचित निर्देश दिए जाने चाहिए ताकि छात्र अच्छी शिक्षा से वंचित न रहें।
सोर्स- एएनआई
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