IIT Guwahati News: आईआईटी गुवाहाटी ने पूर्वोत्तर में उगने वाली बांस से पर्यावरण-अनुकूल सामग्री विकसित की

Santosh Kumar | July 24, 2025 | 05:55 PM IST | 1 min read

शोध टीम वर्तमान में विकसित सामग्री के उपयोग का परीक्षण कर रही है ताकि उत्पादन से लेकर निपटान तक, इसके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया जा सके।

मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर पूनम कुमारी के नेतृत्व में यह शोध किया गया। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)
मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर पूनम कुमारी के नेतृत्व में यह शोध किया गया। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने पूर्वोत्तर भारत में तेजी से बढ़ने वाली बांस की प्रजाति 'बांबूसा टुल्डा' से बना एक पर्यावरण-अनुकूल मिश्रित पदार्थ विकसित किया है, जिसे जैविक रूप से नष्ट होने वाले पॉलीमर के साथ मिला कर तैयार किया गया है। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार (24 जुलाई) को यह जानकारी दी।

अत्यधिक मजबूत, ताप सहन करने, कम नमी का अवशोषण करने और किफायती जैसे अपने गुणों के कारण यह ‘ऑटोमोटिव इंटीरियर’ में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक प्लास्टिक का एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है।

‘ऑटोमोटिव इंटीरियर’ का मतलब है – वाहन के अंदर मौजूद वे सभी चीजें जो यात्रा के दौरान यात्रियों को आराम और सुरक्षा देती हैं। इस विषय पर हुआ शोध मशहूर पत्रिका ‘एनवायरनमेंट, डेवलपमेंट एंड सस्टेनबिलिटी’ (स्प्रिंगर नेचर) में छपा है।

प्लास्टिक कचरे की समस्या का समाधान

मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर के नेतृत्व में किया गया यह शोध न केवल प्लास्टिक कचरे की समस्या का समाधान करता है बल्कि ‘ऑटोमोटिव’ विनिर्माण उद्योग में हरित सामग्रियों की बढ़ती मांग का समाधान भी प्रदान करता है।

प्रोफेसर पूनम कुमारी ने कहा, ‘‘मिश्रण का मूल्यांकन 17 विभिन्न मापदंडों पर किया गया ताकि उनकी मजबूती, तापीय प्रतिरोध, टिकाऊपन, नमी का अवशोषण और प्रति किलोग्राम लागत आदि का परीक्षण किया जा सके।’’

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उन्होंने कहा, "तैयार सामग्री का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और निर्माण में किया जा सकता है। यह उत्पाद लकड़ी/लोहे/प्लास्टिक के घटकों का स्थान लेगा, लागत वही रहेगी और सतत विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देगा।"

यह विकास हरित प्रौद्योगिकी क्रांति के तहत ‘मेक इन इंडिया’ नीति के अनुरूप है। शोध टीम वर्तमान में विकसित सामग्री के उपयोग का परीक्षण कर रही है ताकि उत्पादन से लेकर निपटान तक, इसके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया जा सके।

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