Madarsa News: मदरसे बंद करने के लिए कभी नहीं कहा, मुस्लिम बच्चों को औपचारिक शिक्षा मिलनी चाहिए - एनसीपीसीआर
Press Trust of India | October 16, 2024 | 02:46 PM IST | 4 mins read
एनसीपीसीआर ने एक हालिया रिपोर्ट में मदरसों की कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंता जताई थी तथा सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली धनराशि तब तक रोकने का आह्वान किया था जब तक वे शिक्षा का अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते।
नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि उन्होंने मदरसों को बंद करने के लिए कभी नहीं कहा बल्कि उन्होंने इन संस्थानों को सरकार द्वारा दी जाने वाली धनराशि पर रोक लगाने की सिफारिश की क्योंकि ये संस्थान गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं। कानूनगो ने कहा कि गरीब पृष्ठभूमि के मुस्लिम बच्चों पर अक्सर धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बजाय धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए दबाव डाला जाता है।
उन्होंने कहा कि वह सभी बच्चों के लिए शिक्षा के समान अवसरों की वकालत करते हैं। शीर्ष बाल अधिकार निकाय एनसीपीसीआर ने एक हालिया रिपोर्ट में मदरसों की कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंता जताई थी तथा सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली धनराशि तब तक रोकने का आह्वान किया था जब तक वे शिक्षा का अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते। कानूनगो ने मदरसों की कार्यप्रणाली पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देश के उन कुछ समूहों की आलोचना की जो गरीब मुस्लिम समुदाय के सशक्तीकरण से ‘‘डरते’’ हैं।
समावेशी शैक्षणिक सुधार -
कानूनगो ने ‘पीटीआई-भाषा’ से एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘हमारे देश में एक ऐसा गुट है जो मुसलमानों के सशक्तीकरण से डरता है। उनका डर इस आशंका से उपजा है कि सशक्त समुदाय जवाबदेही और समान अधिकारों की मांग करेंगे।’’ उन्होंने कहा कि समावेशी शैक्षणिक सुधारों के प्रतिरोध के पीछे यही मुख्य कारण है। कानूनगो ने कहा कि उन्होंने मदरसों को बंद करने के लिए कभी नहीं कहा।
गरीब बच्चों को भी शिक्षा दी जानी चाहिए -
कानूनगो ने कहा, ‘‘हमने मदरसों को बंद करने की कभी वकालत नहीं की। हमारा रुख यह है कि जिस तरह संपन्न परिवार धार्मिक और नियमित शिक्षा में निवेश करते हैं, उसी तरह गरीब पृष्ठभूमि के बच्चों को भी यह शिक्षा दी जानी चाहिए।’’ उन्होंने हर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों को समान शैक्षणिक अवसर मुहैया कराए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
बच्चों को सामान्य शिक्षा मिले -
कानूनगो ने सरकार की जिम्मेदारी पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है कि बच्चों को सामान्य शिक्षा मिले। सरकार अपने दायित्वों से आंखें नहीं मूंद सकती।’’ उन्होंने कहा कि गरीब मुस्लिम बच्चों पर अक्सर धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बजाय धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए दबाव डाला जाता है जिससे उनके लिए अवसर कम हो जाते हैं। कानूनगो ने कहा, ‘‘हम अपने सबसे गरीब मुस्लिम बच्चों को आम विद्यालयों के बजाय मदरसों में जाने के लिए क्यों मजबूर करते हैं? यह नीति उन पर अनुचित बोझ डालती है।’’
मौलाना अबुल कलाम आजाद -
उन्होंने ऐतिहासिक नीतियों पर विचार करते हुए सार्वभौमिक शिक्षा के लिए 1950 के बाद के संवैधानिक आदेश का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘1950 में संविधान लागू होने के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद (भारत के पहले शिक्षा मंत्री) ने उत्तर प्रदेश के मदरसों का दौरा किया और घोषणा की कि मुस्लिम बच्चों को विद्यालयों और महाविद्यालयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। इसके कारण उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व काफी कम हो गया जो वर्तमान में लगभग पांच प्रतिशत है।’’
समुदायों की भागीदारी -
उन्होंने हाशिए पर रह रहे अन्य समुदायों की भागीदारी दर पर प्रकाश डाला तथा कहा कि प्रणालीगत पूर्वाग्रहों ने मुस्लिम छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धियों में बाधा उत्पन्न की है। उन्होंने कहा, ‘‘इस स्थिति पर गौर करें: उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले लगभग 13 से 14 प्रतिशत छात्र अनुसूचित जाति (एससी) से और पांच प्रतिशत से अधिक छात्र अनुसूचित जनजाति (एसटी) से हैं। उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों में संयुक्त रूप से एससी और एसटी का 20 प्रतिशत हिस्सा है जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 37 प्रतिशत है लेकिन मुस्लिम केवल पांच प्रतिशत हैं।’’
मदरसा छात्रों को मुख्यधारा के विद्यालयों में शामिल करने के महत्व पर जोर दिया -
कानूनगो ने मुस्लिम समुदाय के पूर्व शिक्षा मंत्रियों की भी आलोचना करते हुए कहा, ‘‘इन मंत्रियों ने मदरसों में खड़े होकर मुस्लिम बच्चों को नियमित शिक्षा प्राप्त करने के लिए हतोत्साहित किया जिससे वे शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित हुए।’’ कानूनगो ने मदरसा छात्रों को मुख्यधारा के विद्यालयों में शामिल करने के महत्व पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘ हमने बच्चों को सामान्य विद्यालयों में दाखिला देने की सिफारिश की है। केरल जैसे कुछ राज्यों ने इसका विरोध किया है, जबकि गुजरात जैसे अन्य राज्यों ने सक्रिय कदम उठाए हैं। अकेले गुजरात में हिंसक विरोध का सामना करने के बावजूद 50,000 से अधिक बच्चों को सामान्य विद्यालयों में दाखिला दिलाया गया है।’’
एनसीपीसीआर अध्यक्ष -
उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले एक दशक में ये मुस्लिम बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर और बैंकर बनेंगे और उनके प्रयासों को सराहेंगे। कानूनगो ने मुस्लिम समुदायों को सशक्त बनाने के व्यापक निहितार्थों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ‘‘मुसलमानों को सशक्त बनाने का मतलब है कि वे समाज में उनकी उचित जगह, जवाबदेही और समानता सुनिश्चित करने की मांग करेंगे।’ कानूनगो ने एनसीपीसीआर के अध्यक्ष के रूप में बुधवार को दो कार्यकाल पूरे किए।
अगली खबर
]GSEB Board Exam Date 2025: गुजरात बोर्ड कक्षा 10वीं, 12वीं परीक्षा टाइम टेबल gseb.org पर जारी, डाउनलोड करें
गुजरात बोर्ड ने हाल ही में कक्षा 9 से 12 के लिए विषयवार प्रश्न बैंक जारी किए थे। कक्षा 9 से 11 के लिए वार्षिक परीक्षाएं 7 अप्रैल से 19 अप्रैल तक आयोजित की जाएंगी।
Abhay Pratap Singh | 4 mins readविशेष समाचार
]- एसएमवीडीआईएमई में हिंदुओं के लिए आरक्षण और मुस्लिम छात्रों को स्थानांतरण करने की मांग को लेकर प्रदर्शन
- IIM Indore Admission Guidelines 2026-28: आईआईएम इंदौर ने पीजीपी एडमिशन गाइडलाइंस जारी की, पात्रता मानदंड जानें
- IIT Bombay News: महाराष्ट्र सरकार आईआईटी बॉम्बे का नाम बदलने के लिए केंद्र को लिखेगी पत्र, सीएम ने दी जानकारी
- दिल्ली का भलस्वा स्लम: आधार कार्ड और गंदगी से गुम हुई शिक्षा
- Nobel Prize in Economics 2025: जोएल मोकिर, फिलिप एगियन और पीटर हॉविट को मिलेगा अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार
- भारत में 33 लाख से अधिक छात्र एकल-शिक्षक स्कूलों पर निर्भर, उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक नामांकन
- Nobel Peace Prize 2025: वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो को मिलेगा नोबेल शांति पुरस्कार, 10 दिसंबर को समारोह
- Nobel Prize in Chemistry 2025: सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन, उमर एम याघी को मिलेगा केमिस्ट्री का नोबेल प्राइज
- Nobel Prize in Physics 2025: जॉन क्लार्क, माइकल एच डेवोरेट और जॉन एम मार्टिनिस को मिला भौतिकी का नोबेल प्राइज
- CAT 2025: कैट परीक्षा 30 नवंबर को 3 पाली में; 2 महीने में कैसे करें तैयारी? जानें एग्जाम पैटर्न, चयन प्रक्रिया