IIT Roorkee: आईआईटी रुड़की ने मोदी लिपि को देवनागरी में बदलने के लिए दुनिया का पहला एआई मॉडल विकसित किया

रिसर्च टीम में सीओईपी टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (पूर्व में कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे) से अध्ययनरत छात्र हर्षल एवं तन्वी, तथा विश्वकर्मा इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, पुणे के पूर्व छात्र ओंकार का भी योगदान था।

इस परियोजना का उद्देश्य एआई-सहायता प्राप्त डिजिटलीकरण के माध्यम से भारत के मध्यकालीन ज्ञान को संरक्षित करना है। (आधिकारिक वेबसाइट)
इस परियोजना का उद्देश्य एआई-सहायता प्राप्त डिजिटलीकरण के माध्यम से भारत के मध्यकालीन ज्ञान को संरक्षित करना है। (आधिकारिक वेबसाइट)

Saurabh Pandey | July 18, 2025 | 01:46 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) ने मोदी लिपि को देवनागरी में लिप्यंतरित करने के लिए दुनिया का पहला एआई फ्रेमवर्क विकसित किया है। विजन-लैंग्वेज मॉडल (वीएलएम) आर्किटेक्चर का लाभ उठाते हुए, MoScNet (एमओएससीनेट) मॉडल मध्यकालीन पांडुलिपियों के संरक्षण एवं डिजिटल इंडिया तथा भाषिणी जैसी पहलों के अंतर्गत बड़े स्तर पर डिजिटलीकरण का समर्थन करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण प्रदान करता है।

ऐतिहासिक लिपियों से आधुनिक दृष्टि नामक यह परियोजना, MoDeTrans (एमओडिट्रांस) नामक अपनी तरह का पहला डेटासेट प्रस्तुत करती है, जिसमें तीन ऐतिहासिक युगों: शिवकालीन, पेशवेकालीन एवं अंगलाकालीन, की वास्तविक मोदी लिपि पांडुलिपियों की 2,000 से ज़्यादा छवियों के साथ-साथ विशेषज्ञों द्वारा सत्यापित देवनागरी लिप्यंतरण भी शामिल हैं।

आईआईटी रुड़की के प्रो. स्पर्श मित्तल के नेतृत्व में एआई मॉडल MoScNet, (एमओएससीनेट), मौजूदा ओसीआर मॉडलों से काफी बेहतर प्रदर्शन करता है और कम संसाधन वाले वातावरण में मौजूद रहने के लिए एक आदर्श स्केलेबल, हल्का समाधान प्रदान करता है।

परियोजना का उद्देश्य

इस परियोजना का उद्देश्य एआई-सहायता प्राप्त डिजिटलीकरण के माध्यम से भारत के मध्यकालीन ज्ञान को संरक्षित करना है, साथ ही इतिहासकारों, शोधकर्ताओं एवं सरकारी अभिलेखागारों के लिए स्केलेबल, ओपन-सोर्स टूल विकसित करना है।

भारतजीपीटी एवं भाषिणी जैसे राष्ट्रीय प्लेटफार्मों के साथ भविष्य के एकीकरण को सक्षम करके, यह मॉडल बहुभाषी एआई क्षमताओं का समर्थन करता है और भारत की सांस्कृतिक संपत्तियों तक पहुंच को बढ़ाता है। यह डिजिटल इंडिया, आज़ादी का अमृत महोत्सव एवं राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन (एनएलटीएम) सहित प्रमुख राष्ट्रीय मिशनों में योगदान देता है।

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आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने कहा कि यह कार्य दर्शाता है कि कैसे हम एआई की शक्ति का उपयोग न केवल स्वचालन के लिए, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने, शैक्षणिक अनुसंधान को सशक्त बनाने एवं राष्ट्र निर्माण को गति देने के लिए भी कर सकते हैं।

मुख्य अन्वेषक, प्रो. स्पर्श मित्तल ने कहा कि हमारा लक्ष्य ओपन-सोर्स, स्केलेबल एवं नैतिक रूप से प्रशिक्षित एआई टूल्स का उपयोग करके भारत के प्राचीन ज्ञान तक पहुंच आसान बनाना है। हमने एक लिप्यंतरण इंजन बनाया है एवं भारतीय लिपियों और बहुभाषी शिक्षण में भविष्य के एआई अनुसंधान की नींव रखी है।

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