पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक समूह ने 2025 की वसंत ऋतु में विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों में 95 छात्रों के साथ समूह बनाकर चर्चा की।
Press Trust of India | July 17, 2025 | 02:56 PM IST
नई दिल्ली: कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के आगमन ने उच्च शिक्षा जगत में सरलता के साथ ही चिंता और असमंजस की लहर भी पैदा कर दी है। शुरुआती अध्ययनों में संकेत मिला है कि एआई टूल्स से विद्यार्थियों की समालोचनात्मक सोच और समस्या सुलझाने की क्षमता कमजोर हो सकती है। साथ ही, यह भी सामने आया है कि छात्र असाइनमेंट करने के लिए चैटबॉट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं और खुद परिश्रम नहीं कर रहे। लेकिन छात्रों का एआई को लेकर खुद क्या नजरिया है? और यह तकनीक उनके सहपाठियों, शिक्षकों और पढ़ाई के साथ उनके संबंधों को किस तरह प्रभावित कर रही है?
पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक समूह ने इस विषय पर अध्ययन किया है। समूह ने 2025 की वसंत ऋतु में विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों में 95 छात्रों के साथ समूह बनाकर चर्चा की। अध्ययन में यह सामने आया कि भले ही छात्र या शिक्षक एआई का प्रयोग कर रहे हों या नहीं, यह तकनीक कक्षा में सीखने की प्रक्रिया और आपसी भरोसे को प्रभावित कर रही है। यह आपके बारे में कोई राय नहीं बनाएगा ज्यादातर प्रतिभागी छात्रों ने बताया कि उन्होंने अकादमिक कार्यों में एआई का इस्तेमाल किया है - खासकर तब, जब समय की कमी हो, काम को ‘बोझिल’ समझा जाए या वे किसी कार्य को अकेले पूरा करने में अक्षम महसूस करें।
अधिकतर छात्र प्रोजेक्ट की शुरुआत एआई से नहीं करते, लेकिन बाद के किसी चरण में उसका सहारा लेते हैं। कुछ छात्रों ने एआई को अध्ययन में उपयोगी बताया। कई बार उन्होंने इसे शिक्षक, ट्यूटर या टीए यानी ‘टीचिंग असिस्टेंट’ की जगह इस्तेमाल किया। एक छात्रा ने कहा, “चैटजीपीटी से आप जितने चाहें उतने सवाल पूछ सकते हैं और यह आपके बारे में कोई राय नहीं बनाएगा।’’ हालांकि, एआई का उपयोग करने पर छात्र खुद को दोषी या शर्मिंदा महसूस करते हैं। कुछ ने इसे आलस्य, पर्यावरणीय या नैतिक चिंता से जोड़कर देखा। कुछ छात्रों ने एआई के बढ़ते प्रभाव को अनिवार्य और अपरिहार्य मानते हुए असहाय होने की भावना भी व्यक्त की।
शहरी नियोजन की एक छात्रा ने कहा, “मैं असमंजस में हूं कि उम्मीदें क्या हैं।” एक अन्य छात्र ने कहा, “छात्र और शिक्षक एक ही जगह पर नहीं हैं। वास्तव में कोई भी नहीं है।” कुछ छात्रों ने अपने उन सहपाठियों के प्रति अविश्वास और हताशा भी जाहिर की, जो एआई पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं। एक छात्र ने बताया कि जब उसने किसी से मदद मांगी, तो पता चला कि मदद कैसे मिलेगी क्योंकि उसके साथी ने तो केवल चैटजीपीटी का इस्तेमाल किया था और स्वयं कुछ नहीं सीखा। समूह कार्यों में भी एआई का उपयोग ‘रेड फ्लैग’ के रूप में देखा गया। एक छात्र ने कहा, “मुझे उनके काम की भी दोबारा जांच करनी पड़ती है। मतलब मेरा काम बढ़ जाता है।” छात्रों और शिक्षकों दोनों के बीच अविश्वास की भावना स्पष्ट रूप से देखी गई। कुछ छात्रों को आशंका थी कि अगर अन्य एआई से बेहतर ग्रेड पा रहे हैं, तो वे पीछे छूट सकते हैं। इससे छात्र आपस में भावनात्मक दूरी बनाने लगे हैं।
शोध में यह भी सामने आया कि एआई तकनीक का प्रभाव न केवल शैक्षणिक प्रक्रिया पर, बल्कि छात्रों और शिक्षकों के संबंधों पर भी पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि छात्र शिक्षकों से मार्गदर्शन लेने से बच रहे हैं और उनके संबंधों में दूरी आ रही है तो विश्वविद्यालयों को वैकल्पिक तरीकों पर विचार करना होगा। आवासीय शिक्षण संस्थानों के परिसरों में आमने-सामने की कक्षाओं पर जोर, शिक्षक-छात्र संवाद को प्रोत्साहित करना, और अनौपचारिक कार्यक्रमों से परस्पर संबंधों को मजबूत किया जा सकता है।
शोधकर्ता मानते हैं कि छात्रों को एआई का इस्तेमाल करने वालों को केवल 'सतही' समझने की धारणा को बदलने की जरूरत है। यह एक जटिल परिस्थिति है, जिसमें छात्रों को स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव में एक नई तकनीकी वास्तविकता से जूझना पड़ रहा है। जैसे-जैसे जनरेटिव एआई हमारे जीवन का हिस्सा बन रहा है, विश्वविद्यालयों को छात्रों का पक्ष सुनना होगा और ऐसे समाधान खोजने होंगे, जिससे वे अपने साथियों और शिक्षकों से सहज रूप से जुड़ सकें।
(द कन्वरसेशन)