IIT Kanpur: आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं की कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं पर रिसर्च
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व वाली टीम नियासिन और अन्य संबंधित दवाओं द्वारा सक्रिय प्रमुख लक्ष्य रिसेप्टर अणु को विजुअलाइज करने में सफल हुई है। यह शोध जिसमें कम दुष्प्रभावों के साथ कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए नई दवाओं के विकास की संभावना है।
Saurabh Pandey | March 13, 2024 | 02:47 PM IST
नई दिल्ली : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के जैविक विज्ञान और बायोइंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण रिसर्च में यह समझने का प्रयास किया है कि नियासिन जैसी कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं आणविक स्तर पर कैसे काम करती हैं। अत्याधुनिक क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) तकनीक का उपयोग करते हुए प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व वाली टीम नियासिन और अन्य संबंधित दवाओं द्वारा सक्रिय प्रमुख लक्ष्य रिसेप्टर अणु को विजुअलाइज करने में सफल हुई है। जिसमें कम दुष्प्रभावों के साथ कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए नई दवाओं के विकास की संभावना है। यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका, नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है।
आईआईटी कानपुर के जैविक विज्ञान और बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला ने कहा कि नियासिन आमतौर पर खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने के लिए निर्धारित दवा है। हालांकि, कई रोगियों में दवा के दुष्प्रभाव होते हैं, जैसे कि त्वचा की लालिमा और खुजली जिसे फ्लशिंग प्रतिक्रिया कहा जाता है। इससे मरीज अपना इलाज बंद कर देते हैं और उनके कोलेस्ट्रॉल स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
हाइड्रोक्सीकार्बोक्सिलिक एसिड रिसेप्टर 2 (HCA2), जिसे नियासिन रिसेप्टर या GPR109A के रूप में भी जाना जाता है, मानव शरीर में एक प्रकार का रिसेप्टर है जो वसा से संबंधित और धमनी-अवरुद्ध प्रक्रियाओं को रोकने में मदद करता है। जब यह सक्रिय होता है, तो यह रक्त वाहिकाओं को भी चौड़ा कर सकता है, यही कारण है कि नियासिन जैसी कुछ कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं के कारण कुछ रोगियों की त्वचा पर लाल रंग के निशान बनने शुरू हो जाता है।
नई दवाओं के निर्माण में मदद
प्रोफेसर शुक्ला ने कहा कि “आण्विक स्तर पर नियासिन के साथ रिसेप्टर अणु GPR109A के तालमेल का विजुलाइजेशन नई दवाओं के निर्माण के लिए आधार तैयार करता है जो प्रतिक्रियाओं को कम करते हुए प्रभावकारिता बनाए रखती हैं। इस अध्ययन के नतीजे कोलेस्ट्रॉल के लिए संबंधित दवाएं और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी अन्य स्थितियों के लिए दवाएं विकसित करने में भी मदद करेंगे।
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. एस. गणेश ने इस मौके पर कहा कि यह एक महत्वपूर्ण सफलता है क्योंकि यह दवा-रिसेप्टर इंटरैक्शन के बारे में हमारी समझ को और बढ़ाती है और बेहतर चिकित्सीय सुविधाओं के लिए नए रास्ते खोलती है। यह उपलब्धि अनुसंधान में नवाचार और उत्कृष्टता के माध्यम से वास्तविक दुनिया की स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के प्रति हमारे समर्पण का उदाहरण देती है। नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशन के लिए इस शोध की स्वीकृति आईआईटी कानपुर में अनुसंधान एवं विकास की गुणवत्ता और उच्च मानकों का प्रमाण है।
विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा समर्थित और आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर अरुण के शुक्ला के नेतृत्व में इस अध्ययन में डॉ. मनीष यादव, सुश्री परिश्मिता सरमा, जगन्नाथ महाराणा, मणिसंकर गांगुली, सुश्री सुधा मिश्रा, सुश्री अन्नू दलाल, नशराह जैदी,सायंतन साहा, सुश्री गार्गी महाजन, विनय सिंह, सुश्री सलोनी शर्मा, और डॉ. रामानुज बनर्जी शामिल थे।
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