NIT Rourkela: एनआईटी राउरकेला ने डायबिटीज मरीजों के ब्लड शुगर लेवेल की जांच के लिए एआई युक्त मॉडल विकसित किया
एनआईटी राउरकेला द्वारा विकसित मॉडल से वर्तमान तकनीकों की तुलना में ब्लड शुगर के अधिक सटीक पूर्वानुमान मिले।
Abhay Pratap Singh | February 25, 2025 | 01:41 PM IST
नई दिल्ली: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (NIT Rourkela) के बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ मिर्जा खालिद बेग के नेतृत्व में शोध टीम ने डायबिटी के मरीजों के ब्लड शुगर लेवेल का बेहतर पूर्वानुमान देने के लिए एआई आधारित एक नए मॉडल का विकास किया है। यह शोधपत्र प्रोफेसर बेग और उनके रिसर्च स्कॉलर दीपज्योति कलीता ने मिल कर लिखा है।
इसके निष्कर्ष आईईईई जर्नल ऑफ बायोमेडिकल एंड हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स में प्रकाशित किए गए हैं। इस शोध में एक मशीन-लर्निंग मॉडल प्रस्तुत किया गया है जो ब्लड शुगर लेवेल का अधिक सटीक पूर्वानुमान देता है। इससे डायबिटीज के बेहतर और व्यक्तिगत तौर पर उपचार का निर्णय लेने में मरीजों और चिकित्सकों को मदद मिलेगी।
एआई लर्निंग मॉडल -
डायबिटीज पर शोध के विभिन्न पहलुओं में मशीन लर्निंग (एमएल) का उपयोग किया जा रहा है। इनमें बुनियादी अध्ययनों से लेकर पूर्वानुमान देने वाले उपकरण तक शामिल हैं, जो डॉक्टरों और मरीजों को उपचार का बेहतर और समय पर निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। हालांकि एआई लर्निंग मॉडल, विशेष कर प्रेडिक्टिव एआई मॉडल में कुछ कमियां हैं। इनमें कई मॉडल ‘ब्लैक बॉक्स’ की तरह काम करते हैं अर्थात् उनके पूर्वानुमानों को समझना कठिन होता है।
पारदर्शिता में कमी देखते हुए डॉक्टर और मरीज उन पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पाते हैं। इतना ही नहीं, पारंपरिक मॉडल जैसे कि सांख्यिकीय पूर्वानुमान की विधियां या बेसिक न्यूरल नेटवर्क अक्सर लंबी अवधि में ग्लूकोज के उतार-चढ़ाव को नहीं समझ पाते हैं और उन्हें फाइन-ट्यून करने की आवश्यकता होती है जो एक जटिल काम है।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला -
एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं ने ग्लूकोज लेवेल का अधिक सटीक पूर्वानुमान देने के लिए डीप लर्निंग तकनीक के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अपने काम में एक विशेष एआई मॉडल शामिल किया जो ब्लड शुगर के पिछले ट्रेंड से जानकारी लेता है और अब तक प्रचलित विधियों की तुलना में अधिक सटीक पूर्वानुमान देता है।
यह मॉडल ग्लूकोज डेटा को ऑटोमैटिक प्रोसेस करता है जबकि इससे भिन्न पारंपरिक पूर्वानुमान मॉडल अक्सर लंबी अवधि के ट्रेंड बताने में नाकाम रहा है और इनमे मैन्युअल एडजस्टमेंट की भी आवश्यकता होती है। नया मॉडल खास पैटर्न की पहचान करता है और सटीक पूर्वानुमान देता है।
क्लिनिकल ट्रायल -
एनआईटी राउरकेला में बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर मिर्ज़ा खालिद बेग ने बताया कि, ‘‘साल 2023 में जारी आईसीएमआर इंडियाएबी के शोध परिणामों के अनुसार हमारे देश में डायबीटीज़ कुल जनसंख्या का 11.4 प्रतिशत है और प्रीडायबीटीज़ 15.3 प्रतिशत है। इसलिए इस समस्या से निपटने का नया समाधान विकसित करना अत्यावश्यक है।”
वर्तमान में शोधकर्ता इस तकनीक के व्यापक क्लिनिकल ट्रायल की योजना बना रहे हैं। ये परीक्षण ओडिशा के वरिष्ठ डायबीटीज़ विशेषज्ञ डॉ. जयंत कुमार पांडा और उनकी टीम के सहयोग से विभिन्न अस्पतालों में किए जाएंगे। इस प्रोजेक्ट में डीएसटी, डीबीटी और एनआईटी राउरकेला के सहयोग के प्रति यह टीम आभार व्यक्त करती है।
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