IIT Madras: शोधकर्ताओं ने छात्रों में परीक्षा की चिंता के पूर्वानुमान के लिए शारीरिक संकेतकों की पहचान की

Press Trust of India | November 16, 2025 | 05:26 PM IST | 2 mins read

आईआईटी शोधकर्ताओं का यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि परीक्षा के दौरान चिंता से जूझने वाले छात्रों में मस्तिष्क और हृदय किस प्रकार अलग-अलग तरीके से परस्पर क्रिया करते हैं तथा प्रारंभिक पहचान और व्यक्तिगत रूप से इससे निपटने की रणनीतियों के लिए एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है।

यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय पत्रिका बिहेवियरल ब्रेन रिसर्च में प्रकाशित हुआ है। (इमेज-आधिकारिक वेबसाइट)

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (IIT Madras) के शोधकर्ताओं ने मापने योग्य शारीरिक संकेतकों की पहचान की है, जो परीक्षा के बारे में अधिक चिंता करने वाले छात्रों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं। इससे नये और लक्षित हस्तक्षेपों का मार्ग प्रशस्त होगा, जो शैक्षिक प्रणालियों में तनाव और प्रदर्शन के प्रति दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।

यह अध्ययन बिहेवियरल ब्रेन रिसर्च में प्रकाशित हुआ है, जो एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका है। यह मनुष्यों और जानवरों में व्यवहार और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के तंत्रिका-जैविक आधार पर अध्ययन प्रकाशित करती है।

आईआईटी शोधकर्ताओं का यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि परीक्षा के दौरान चिंता से जूझने वाले छात्रों में मस्तिष्क और हृदय किस प्रकार अलग-अलग तरीके से परस्पर क्रिया करते हैं तथा प्रारंभिक पहचान और व्यक्तिगत रूप से इससे निपटने की रणनीतियों के लिए एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी, 2022) के अनुसार, परीक्षा की चिंता अनुमानित 81 प्रतिशत भारतीय छात्रों को प्रभावित करती है, जिससे अक्सर शैक्षणिक प्रदर्शन और दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। जहां कुछ छात्र दबाव में अच्छा प्रदर्शन कर लेते हैं, वहीं, कुछ छात्र टालमटोल करने लगते हैं और प्रभावी ढंग से सामना नहीं कर पाते।

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आईआईटी मद्रास के इंजीनियरिंग डिजाइन विभाग के वेंकटेश बालसुब्रमण्यन के अनुसार, शोध दल ने यह समझने की कोशिश की कि ऐसा क्यों होता है और उन्होंने वस्तुनिष्ठ, शारीरिक आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यह पता चला है कि तनाव के दौरान जब मस्तिष्क–हृदय संचार नेटवर्क बाधित होता है, तो कुछ छात्र अधिक चिंता और परहेजी व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। यह अध्ययन अनुकूल (एडैप्टिव) और प्रतिकूल (मैलएडैप्टिव) परीक्षा-प्रतिक्रियाओं के बीच एक स्पष्ट जैविक अंतर को उजागर करता है।’’

बालसुब्रमण्यन ने बताया कि टीम ने पाया कि लोगों में तनाव के दौरान हृदय स्पंदन अनियमित था, जिसका अर्थ है कि उनकी चिंता की प्रवृत्ति मूल्यांकनात्मक परिवेश में हृदय के संतुलित रहने की क्षमता को प्रभावित कर सकती थी।

उन्होंने कहा, ‘‘यह सूक्ष्म समझ अकादमिक तनाव को देखने के हमारे नज़रिए को बदल देती है—एक विशुद्ध मनोवैज्ञानिक मुद्दे के रूप में नहीं, बल्कि माप करने योग्य शारीरिक अंतःक्रियाओं पर आधारित एक मुद्दे के रूप में।’’

आईआईटी मद्रास की शोधार्थी स्वाति परमेश्वरन ने बताया कि ये जानकारियां व्यावहारिक अनुप्रयोगों की अपार संभावनाओं को खोलती हैं। इन मनो-शारीरिक संकेतकों पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणालियों को प्रशिक्षित करके, वास्तविक समय निगरानी उपकरण विकसित करना संभव हो सकता है जो संकट के स्पष्ट संकेतों का इंतज़ार किए बिना, शिक्षकों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को जोखिमग्रस्त छात्रों के बारे में सचेत कर सकें।

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