Santosh Kumar | December 16, 2025 | 04:36 PM IST | 2 mins read
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता का उल्लंघन करता है और उनकी स्वतंत्रता का क्षरण करता है।

नई दिल्ली: लोकसभा ने 'विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025' को जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजने की मंजूरी दे दी है। यह बिल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में बड़े सुधारों का प्रस्ताव करता है, जिसमें मौजूदा यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई को समाहित कर एक छत्र निकाय की स्थापना की जाएगी। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 15 दिसंबर को यह बिल लोकसभा में पेश किया था। कुछ सदस्यों के विरोध के बावजूद, सरकार ने इसे विस्तार से जांच के लिए जेपीसी के पास भेजने का प्रस्ताव दिया, जिसे सदन ने मंजूरी दे दी।
यह विधेयक संविधान की 7वीं अनुसूची में संघ सूची की प्रविष्टि 66 के प्रावधानों के तहत पेश किया गया। इसमें 'उच्च शिक्षा या अनुसंधान संस्थानों और वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों में समन्वय और मानकों के निर्धारण' का प्रावधान है।
विधेयक में 3 परिषदों के साथ शीर्ष निकाय के रूप में स्थापना का प्रावधान है, जिसमें शिक्षा विनियमन परिषद (नियामक परिषद), शिक्षा गुणवत्ता परिषद (मान्यता परिषद), और शिक्षा मानक परिषद (मानक परिषद) शामिल हैं।
इस विधेयक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद अधिनियम, 1987 और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम (एनसीटीई), 1993 को निरस्त करने का भी प्रावधान है।
शिक्षा मंत्रालय, यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई के दायरे में आने वाले सभी उच्च शिक्षण संस्थान मानकों के निर्धारण के लिए विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान के दायरे में होंगे। यह विधेयक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है।
एनईपी 2020 में परिकल्पित वास्तुकला परिषद (सीओए) व्यावसायिक मानक निर्धारण निकाय (पीएसएसबी) के रूप में कार्य करेगी। यह विधेयक राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को दी गई स्वायत्तता के वर्तमान स्तर को बनाए रखने को सुनिश्चित करता है।
आयोग या वीबीएसए के पास नियम-कानून तोड़ने पर पेनल्टी लगाने की भी पावर होगी, जिसमें 10 लाख रुपये से लेकर 75 लाख रुपये तक का जुर्माना शामिल है, और ग्रांट रोकने और एफिलिएशन रद्द करने की सिफारिश भी की जा सकती है।
अगर कोई बिना अप्रूवल के यूनिवर्सिटी खोलता है, तो उस पर 2 करोड़ रुपये का जुर्माना लगेगा। चेयरपर्सन और संबंधित काउंसिलों के प्रेसिडेंट का कार्यकाल शुरू में "तीन साल" का होगा, जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है।
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता का उल्लंघन करता है और उनकी स्वतंत्रता का क्षरण करता है। इससे, राज्य कानून के तहत स्थापित शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता प्रभावित होगी।
वहीं, आरएसपी के एन. के. प्रेमचंद्रन ने विधेयक के हिंदी नाम को लेकर विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि दक्षिण भारत के सांसदों को इसका उच्चारण करने में दिक्कत हो रही है। उन्होंने कहा कि इसका नाम अंग्रेजी में होना चाहिए।
यह प्रस्तावित कानून केंद्र और राज्य स्तर की यूनिवर्सिटी, डीम्ड यूनिवर्सिटी और देश भर के दूसरे कॉलेजों पर लागू होगा। ऑनलाइन और डिस्टेंस लर्निंग संस्थान भी इसके दायरे में आएंगे। लेकिन मेडिकल और लॉ कॉलेज इसके दायरे से बाहर रहेंगे।