विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी राज्यों से जिला स्तर पर रैगिंग विरोधी समितियां गठित करने को कहा है। जिला कलेक्टर/उपायुक्त/जिला मजिस्ट्रेट समिति के अध्यक्ष होंगे।
Abhay Pratap Singh | April 28, 2024 | 06:19 PM IST
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने रैगिंग रोकने के लिए यूजीसी रेगुलेशन 2009 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एंटी-रैगिंग समितियां गठित करने का जिला प्रशासन और उच्च शिक्षा संस्थानों को निर्देश दिया है। यूजीसी ने कहा कि यदि नियम लागू हैं और इसका पालन नहीं किया गया तो दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
यूजीसी नियमों के अनुसार, रैगिंग विरोधी जिला स्तरीय समिति की अध्यक्षता जिला कलेक्टर, उपायुक्त या जिला मजिस्ट्रेट को करनी चाहिए। वहीं, अतिरिक्त जिला सदस्य सचिव को सचिव नियुक्त किया जाना चाहिए। समिति सदस्यों में पुलिस अधीक्षक/ एसएसपी, स्थानीय मीडिया प्रतिनिधि, गैर-सरकारी संगठन का एक व्यक्ति, छात्र संगठन का नेता और स्थानीय पुलिस शामिल होनी चाहिए।
प्रत्येक संस्थान की तैयारियों की स्थिति, नीतियों और निर्देशों के अनुपालन का जायजा लेने के लिए समितियों को गर्मी की छुट्टियों के दौरान तैयारी बैठक आयोजित करनी होगी। यूजीसी दिशानिर्देशों के अनुसार, नियम अनिवार्य हैं और सभी संस्थानों को निगरानी सहित इसके कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है।
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स्थानीय पुलिस, स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ संस्थागत प्राधिकारी रैगिंग की परिभाषा के अंतर्गत आने वाली घटनाओं पर निगरानी सुनिश्चित करेंगे। उच्च शिक्षा संस्थान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की आधिकारिक वेबसाइट ugc.gov.in और antirlogging.in पर जाकर एंटी रैगिंग संबंधित नियमों को देख सकते हैं।
यूजीसी ने कहा कि रैगिंग एक अपराध है और यूजीसी ने इसे प्रतिबंधित करने और खत्म करने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने के लिए नियम बनाए हैं। इन नियमों के किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा। यदि कोई संस्थान रैगिंग को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाने में विफल रहता है, तो यूजीसी नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।
यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने ऑफिशियल सोशल मीडिया हैंडल 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर आज यानी 28 अप्रैल 2024 को यूजीसी एंटी रैगिंग रेगुलेशन 2009 के संदर्भ में नोटिस जारी किया है। जिसमें कहा गया कि उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की जांच के लिए जिला स्तरीय पैनल का गठन किया जाना चाहिए।