Abhay Pratap Singh | November 14, 2025 | 10:37 PM IST | 2 mins read
‘उच्च शिक्षा संस्थानों की निरंतर सुधार यात्रा: प्रशिक्षण के भविष्य को आकार देने वाले दृष्टिकोण और अभ्यास’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और ग्रांट थॉर्नटन भारत द्वारा प्रकाशित की गई है।

नई दिल्ली: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत को वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा प्रणाली में 8.61 करोड़ पंजीकरण की आवश्यकता है। यह वर्तमान स्तर की तुलना में 85 प्रतिशत की भारी वृद्धि है और इसे हासिल करने के लिए उच्च शिक्षा क्षमता में लगातार 5.3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर की आवश्यकता है।
यह आकलन ‘उच्च शिक्षा संस्थानों की निरंतर सुधार यात्रा: प्रशिक्षण के भविष्य को आकार देने वाले दृष्टिकोण और अभ्यास’ शीर्षक वाली उस रिपोर्ट में किया गया है, जिसे भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और ग्रांट थॉर्नटन भारत ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘2035 तक सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के 50 प्रतिशत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को लगभग 8,61,00,000 छात्रों का पंजीकरण करना होगा - जो इसके वर्तमान स्तर से 85 प्रतिशत की वृद्धि है।’’
रिपोर्ट में कहा गया कि, ‘‘इसका अर्थ है कि अगले दशक में लगभग 5.3 प्रतिशत की निरंतर वार्षिक वृद्धि दर चाहिए होगी, जो एक कठिन चुनौती है जिसके लिए छात्रों के लिए सीटों और संकाय क्षमता दोनों में महत्वपूर्ण विस्तार आवश्यक है।’’
इसमें आगे कहा गया है, ‘‘पारंपरिक भौतिक संस्थान आधारभूत बने रहेंगे, लेकिन वे अकेले इस पैमाने को पूरा नहीं कर सकते। इसलिए, एक अलग दृष्टिकोण आवश्यक है - जिसमें डिजिटल विश्वविद्यालयों, आभासी शिक्षण पारिस्थितिकी तंत्रों और क्रेडिट-आधारित ऑनलाइन कार्यक्रमों जैसे प्रौद्योगिकी-सक्षम, लचीले शिक्षण मार्गों को व्यवस्थित रूप से अपनाना शामिल हो, जो भौतिक परिसरों से परे पहुंच का विस्तार करते हैं।’’
ये निष्कर्ष उत्तरी क्षेत्र के दस से अधिक विश्वविद्यालयों के साथ तीन गोलमेज बैठकों पर आधारित हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘जैसे-जैसे तकनीक, वैश्वीकरण और शिक्षार्थियों की अपेक्षाएं शिक्षा परिदृश्य को नया रूप दे रही हैं, उच्च शिक्षा संस्थान नवोन्मेषी तरीके से शैक्षणिक लचीलेपन को बढ़ाने, सहभागी शासन, नीतियों और प्रक्रियाओं के पुनरुद्धार, कार्यप्रवाह में सुधार और स्वचालन के माध्यम से हितधारकों के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं, जिसमें तकनीक शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक दोनों क्षेत्रों में एक अभिन्न भूमिका निभा रही है।’’