बंबई एचसी ने ऑपरेशन सिंदूर पर किए गए पोस्ट के चलते पुणे की छात्रा को निष्कासित किए जाने का आदेश खारिज किया
मूल रूप से जम्मू कश्मीर की रहने वाली सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग की 19 वर्षीय छात्रा को पिछले महीने गिरफ्तार किया गया था और उसे बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया।
Press Trust of India | June 9, 2025 | 09:31 PM IST
नई दिल्ली: बंबई उच्च न्यायालय (Bombay HC) ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारत सरकार की आलोचना करने संबंधी सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार की गई पुणे की छात्रा को जारी निष्कासन आदेश को सोमवार (9 जून, 2025) को खारिज कर दिया। बंबई एचसी ने कहा कि उसका पक्ष सुने बिना कॉलेज की कार्रवाई ‘‘नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन’’ है।
मूल रूप से जम्मू कश्मीर की रहने वाली सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग की 19 वर्षीय छात्रा को पिछले महीने गिरफ्तार किया गया था और उसे बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। उसकी तत्काल रिहाई का 27 मई को आदेश देते हुए, अदालत ने कॉलेज द्वारा जारी निष्कासन आदेश को भी निलंबित कर दिया, जिससे उसे दूसरे वर्ष की सेमेस्टर परीक्षाओं में बैठने की अनुमति मिल गई।
न्यायमूर्ति मकरंद एस कार्णिक और न्यायमूर्ति नितिन आर बोरकर की खंडपीठ ने सोमवार को कहा कि छात्रा का पक्ष सुने बिना सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा जारी निष्कासन पत्र ‘‘नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन’’ है। निष्कासन आदेश को खारिज करते हुए, अदालत ने संस्थान को उसकी दलील सुनने और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने के बाद उचित निर्णय लेने की छूट दी।
हिरासत के दौरान छूटी हुई परीक्षाओं में छात्रा को बैठने की अनुमति देने के विषय पर, अदालत ने कहा कि उसने मामले के तथ्यों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। पीठ ने कहा कि सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (एसपीपीयू) के परीक्षा बोर्ड (बीओई) के निदेशक को उनके अभ्यावेदन पर शीघ्रता से उचित निर्णय लेना है।
विवाद 7 मई को शुरू हुआ, जब बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (सूचना प्रौद्योगिकी) की छात्रा ने इंस्टाग्राम पर 'रिफॉर्मिस्तान' नाम के अकाउंट से एक पोस्ट साझा की, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के बीच भारत सरकार की आलोचना की गई थी। हालांकि, अपनी गलती का एहसास होने पर उसने पोस्ट हटा ली और इसे रीपोस्ट करने के लिए माफी भी मांगी।
किशोरी द्वारा पोस्ट को तुरंत हटाने के बावजूद, पुणे की कोंढवा पुलिस ने नौ मई को प्राथमिकी दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया। बाद में, उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और यरवदा जेल में बंद कर दिया गया। कॉलेज ने भी उसे तुरंत निष्कासित कर दिया। अपने निष्कासन को चुनौती देते हुए और प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध के साथ छात्रा ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
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