एनआईटी राउरकेला ने शहरी जलाशयों को बचाने के लिए प्रकृति-आधारित वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट मॉडल तैयार किया

Abhay Pratap Singh | December 4, 2025 | 02:41 PM IST | 2 mins read

महिला वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह प्रणाली बड़ी मात्रा में गंदे पानी को साफ कर सकती है।

एसोसिएट प्रो कस्तूरी दत्ता के नेतृत्व में शोधार्थी दिव्यानी कुमारी (पीएचडी) और कार्तिका शनमुगम (ऐमटेक) ने “कंस्ट्रक्टेड वेटलैंड–माइक्रोबियल फ्यूल सेल (CW-MFC)” प्रणाली विकसित की है।
एसोसिएट प्रो कस्तूरी दत्ता के नेतृत्व में शोधार्थी दिव्यानी कुमारी (पीएचडी) और कार्तिका शनमुगम (ऐमटेक) ने “कंस्ट्रक्टेड वेटलैंड–माइक्रोबियल फ्यूल सेल (CW-MFC)” प्रणाली विकसित की है।

नई दिल्ली: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (NIT Rourkela) के शोधकर्ताओं ने एक प्रकृति-आधारित प्रदूषित जल ट्रीटमेंट मॉडल तैयार किया है, जिसका उद्देश्य भारत के धोबी घाटों में जल आपूर्ति और शहरी जल स्त्रोतों की रक्षा करना है। इस सिस्टम में पानी साफ करने के लिए कुदरती चीजें इस्तेमाल की जाती है और ट्रीटमेंट के दौरान बायोइलेक्ट्रिसिटी बनती है।

बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर कस्तूरी दत्ता के नेतृत्व में शोधार्थी दिव्यानी कुमारी (पीएचडी) और कार्तिका शनमुगम (एमटेक) ने धोबी घाट के अत्यंत प्रदूषित पानी के उपचार के लिए एक “कंस्ट्रक्टेड वेटलैंड–माइक्रोबियल फ्यूल सेल (CW-MFC)” प्रणाली विकसित की है।

रिसर्च टीम ने बतौर पायलट प्रोजेक्ट एनआईटी राउरकेला के ही धोबी घाट पर इस सिस्टम का परीक्षण किया जहां प्रतिदिन लगभग 1400 लीटर डिटर्जेंट से प्रदूषित पानी निकलता है। यह सिस्टम ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स से मान्य सीमा (1 पीपीएम) तक सर्फेक्टेंट और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) सफलतापूर्वक मुक्त करने में सफल रहा है।

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यह सिस्टम रियल-टाइम बायोइलेक्ट्रिसिटी पैदा करने के साथ-साथ असीमित मात्रा में प्रदूषित पानी को ट्रीट कर सकता है। सिस्टम का आकार और संख्या बढ़ा कर ट्रीटमेंट की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इसलिए यह सिस्टम मुंबई के महालक्ष्मी और बेंगलुरु के हलासुरु जैसे धोबी घाटों के लिए भी बहुत उपयुक्त है।

इस सिस्टम की उपयोगिता बताते हुए एनआईटी राउरकेला में बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर कस्तूरी दत्ता ने कहा, “हमारी टीम ने प्रदूषित पानी के ट्रीटमेंट के लिए कुदरती चीजों से यह सिस्टम बनाया है। प्रदूषित पानी को साफ करने के लिए बजरी, रेत, मिट्टी, पौधे और माइक्रोब्स का इस्तेमाल किया गया है।”

एसोसिएट प्रोफेसर दत्ता ने आगे बताया कि, यह सिस्टम ‘प्रकृति से प्रेरित है और इसका लक्ष्य पानी साफ करना है’। मैं इसके लिए हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी का आभार व्यक्त करती हूं, जिसने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत आर्थिक आधार देकर इसे सफल बनाया।

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