विधि स्नातक होते ही न्यायिक सेवा परीक्षा नहीं दे सकते छात्र, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 3 साल का वकालती अनुभव जरूरी

Press Trust of India | May 20, 2025 | 02:00 PM IST | 1 min read

ख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने भावी न्यायाधीशों के लिए अदालती अनुभव के महत्व को दोहराया।

यह फैसला अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा दायर याचिका पर आया। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)
यह फैसला अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा दायर याचिका पर आया। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार (20 मई) को कहा कि युवा विधि स्नातक होते ही न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते हैं और प्रवेश स्तर के पदों पर आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम 3 साल वकालत करना अनिवार्य है।

इस फैसले का न्यायिक सेवा के इच्छुक उम्मीदवारों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने भावी न्यायाधीशों के लिए अदालती अनुभव के महत्व को दोहराया।

प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘नए विधि स्नातकों की नियुक्ति से कई कठिनाइयां आई हैं, जैसा कि कई उच्च न्यायालयों ने कहा है। न्यायिक दक्षता और क्षमता सुनिश्चित करने के लिए अदालत में व्यावहारिक अनुभव आवश्यक है।’’

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पीठ ने कहा कि निम्न श्रेणी कैडर के प्रवेश स्तर के सिविल न्यायाधीश पदों के लिए न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने के वास्ते न्यूनतम तीन साल की वकालत अनिवार्य है। यह फैसला अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा दायर याचिका पर आया।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि नए विधि स्नातकों को न्यायपालिका में सीधे प्रवेश की अनुमति देने से व्यावहारिक चुनौतियां पैदा हुई हैं, जैसा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों में परिलक्षित होता है। विस्तृत फैसले का इंतजार है।

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