उच्च चिकित्सा संस्थानों में थर्ड जेंडर उम्मीदवारों के लिए कोटा संबंधी याचिका पर एससी 18 सितंबर को करेगी सुनवाई

Press Trust of India | September 16, 2025 | 08:42 PM IST | 2 mins read

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने 2014 के राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) फैसले के अनुरूप स्नातकोत्तर (पीजी) चिकित्सा पाठ्यक्रमों में थर्ड जेंडर उम्मीदवारों के लिए आरक्षण लाभ लागू करने का अनुरोध किया।

वरिष्ठ वकील ने कहा कि वह तीन ऐसे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं जिन्होंने स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए आवेदन किया था। (स्त्रोत-आधिकारिक वेबसाइट)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (SC) ने उच्च चिकित्सा शिक्षा संस्थानों में थर्ड जेंडर (ट्रांसजेंडर) उम्मीदवारों के लिए सीटों के आरक्षण से संबंधित याचिका पर 18 सितंबर को सुनवाई करने पर सहमति जताई। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि यदि थर्ड जेंडर व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करने के लिए शीर्ष अदालत का कोई आदेश है, तो उसका पालन किया जाना चाहिए।

कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि एक मुद्दा यह है कि इस समुदाय के व्यक्तियों के लिए कोटा क्षैतिज होगा या नहीं। क्षैतिज कोटे के तहत, इस समुदाय को, चाहे वे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) या सामान्य वर्ग से हों, थर्ड जेंडर से संबंधित होने के कारण आरक्षण का लाभ मिलेगा।

जयसिंह ने 2014 के राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) फैसले के अनुरूप स्नातकोत्तर (पीजी) चिकित्सा पाठ्यक्रमों में तृतीय लिंगी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण लाभ लागू करने का अनुरोध किया। उक्त फैसले में, सकारात्मक कार्रवाई के लिए उनके अधिकार सहित तृतीय लिंग व्यक्तियों के अधिकारों को मान्यता दी गई थी।

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वरिष्ठ वकील ने कहा कि वह तीन ऐसे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं जिन्होंने स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए आवेदन किया था। उन्होंने कहा कि जहां एक याचिकाकर्ता ने अब अपनी याचिका वापस लेने का अनुरोध किया है, वहीं बाकी अभ्यर्थी, जो क्रमशः ओबीसी और सामान्य वर्ग से आते हैं, आरक्षण का लाभ उठाना चाहते हैं।

जयसिंह के अनुसार, दोनों याचिकाकर्ताओं ने प्रवेश परीक्षाएं दी थीं, लेकिन तृतीय लिंगी आरक्षण के मामले में लागू ‘कट-ऑफ’ अंकों को लेकर अस्पष्टता बनी रही। उन्होंने उल्लेख किया कि विभिन्न उच्च न्यायालयों ने ऐसे आदेश जारी किए जो एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं, जिनमें से कुछ में तृतीय लिंग उम्मीदवारों के लिए तदर्थ आरक्षण प्रदान किया, जबकि कुछ में राहत देने से इनकार कर दिया।

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