IIT Guwahati: आईआईटी गुवाहाटी ने व्यक्तिगत चिकित्सा देखभाल के लिए मल्टी-स्टेज क्लीनिकल ट्रायल मेथड विकसित किया

आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल और अन्य वैश्विक संस्थानों के साथ मिलकर यह शोध किया।

इस शोध के निष्कर्ष जर्नल बायोमेट्रिक्स में प्रकाशित हुए हैं, जिसके सह-लेखक डॉ. पलाश घोष तथा उनके शोधार्थी आईआईटी गुवाहाटी से रिक घोष हैं।

Abhay Pratap Singh | February 3, 2025 | 06:44 PM IST

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी (IIT Guwahati) ने व्यक्तिगत चिकित्सा देखभाल में क्रांति लाने के उद्देश्य से मल्टी-स्टेज क्लीनिकल ट्रायल मेथड विकसित किया है। यह मेथड अत्याधुनिक दृष्टिकोण परीक्षणों के दौरान प्रत्येक मरीज की रियल-टाइम प्रतिक्रियाओं के आधार पर वास्तविक समय में उपचार योजनाओं को अनुकूलित बनाता है।

प्रेस रिलीज के अनुसार, “ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर और यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन, यूएसए के साथ मिलकर यह परीक्षण किया है।” संस्थान ने कहा कि, यह शोध सीक्वेंशियल मल्टीपल असाइनमेंट रैंडमाइज्ड ट्रायल्स (SMARTs) के माध्यम से डिजाइन किए गए डायनेमिक ट्रीटमेंट रेजीम्स (DTRs) पर केंद्रित है।

आगे कहा गया कि, “डीटीआर एडवांस डिसीजन नियम है, जो मरीज की स्थिति विकसित होने पर उपचार को गतिशील रूप से अनुकूलित करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई रोगी मधुमेह से पीड़ित है और प्रारंभिक दवा परिणाम नहीं दे रही है, तो डीटीआर निर्धारित दवाओं को बदलने या उपचारों को संयोजित करने जैसे सुझाव प्रदान करेगा।”

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प्रभावी डीटीआर विकसित करने के लिए बहु-चरणीय नैदानिक परीक्षण आवश्यक हैं और स्मार्ट पद्धति शोधकर्ताओं को प्रत्येक मरीज के लिए सर्वोत्तम उपचार क्रम खोजने के लिए विभिन्न उपचार क्रमों का परीक्षण करने में सक्षम बनाती है। SMART में उपचार के कई चरण शामिल होते हैं, जहां मरीजों को पहले किए गए हस्तक्षेपों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर पुनः उपचार दिया जाता है।

आईआईटी गुवाहाटी के अनुसार, “अगले कदम के रूप में, अनुसंधान दल पारंपरिक भारतीय औषधियों का उपयोग करके मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रभावी प्रबंधन के लिए स्मार्ट परीक्षण करने हेतु भारतीय चिकित्सा संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है।”

आईआईटी गुवाहाटी के गणित विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. पलाश घोष ने कहा, “इस तरह के अनुकूली डिजाइन SMART जैसे क्लीनिकल परीक्षणों में अधिक रोगी भागीदारी को प्रोत्साहित करेंगे। जब मरीज देखते हैं कि उन्हें उनकी जरूरतों के हिसाब से उपचार मिल रहा है, तो उनके जुड़े रहने की संभावना ज्यादा होती है।”

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