Delhi School Fee Row: दिल्ली एचसी ने स्कूल परिसर में ‘बाउंसर’ के इस्तेमाल पर डीपीएस द्वारका को लगाई फटकार

Press Trust of India | June 5, 2025 | 10:34 PM IST | 2 mins read

जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि वित्तीय चूक के कारण किसी छात्र को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना और डराना न केवल मानसिक उत्पीड़न है, बल्कि इससे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचती है।

न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि शिक्षण संस्थान में इस तरह की प्रथा का कोई स्थान नहीं है। (स्त्रोत-आधिकारिक वेबसाइट/Delhi HC)
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि शिक्षण संस्थान में इस तरह की प्रथा का कोई स्थान नहीं है। (स्त्रोत-आधिकारिक वेबसाइट/Delhi HC)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार (5 जून, 2025) को दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका को शुल्क विवाद के कारण अपने परिसर में छात्रों के प्रवेश को रोकने के लिए ‘‘बाउंसर’’ का इस्तेमाल करने के लिए फटकार लगाई। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि शिक्षण संस्थान में इस तरह की प्रथा का कोई स्थान नहीं है।

उन्होंने कहा कि वित्तीय चूक के कारण किसी छात्र को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना और डराना न केवल मानसिक उत्पीड़न है, बल्कि इससे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचती है। अदालत ने कहा कि हालांकि स्कूल को उचित शुल्क लेने का अधिकार है, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे को बनाए रखने, कर्मचारियों को पारिश्रमिक देने और अनुकूल शिक्षण माहौल प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है।

आदेश में कहा गया है, ‘‘यह अदालत याचिकाकर्ता स्कूल द्वारा कुछ छात्रों के स्कूल परिसर में प्रवेश को रोकने के लिए ‘बाउंसर’ को नियुक्त करने के कथित आचरण पर भी अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए बाध्य है। इस तरह के निंदनीय व्यवहार का शिक्षण संस्थान में कोई स्थान नहीं है।’’

यह आदेश शुल्क के मुद्दे पर स्कूल द्वारा 30 से अधिक छात्रों को निकाले जाने के खिलाफ दायर याचिका पर आया है। आदेश सुनाते समय स्कूल के वकील ने अदालत को बताया कि 31 छात्रों को प्रवेश से वंचित करने वाला आदेश वापस ले लिया गया है और उन्हें बहाल कर दिया गया है।

Also readDelhi University: दिल्ली एचसी ने डीयू को गैर-शिक्षण कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया

अदालत ने कहा कि संबंधित माता-पिता स्कूल को अपेक्षित शुल्क के भुगतान के संबंध में उच्च न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा पारित आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। न्यायमूर्ति दत्ता ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘बाउंसर’ के इस्तेमाल से ‘‘भय और अपमान का माहौल’’ पैदा होता है, जो स्कूल के मूल चरित्र के अनुरूप नहीं है।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा और मूल्यों का समावेशन स्कूल का प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए, न कि इसे व्यावसायिक उद्यम के रूप में संचालित करना चाहिए।

स्कूल के वकील ने कहा कि स्कूल को पिछले 10 वर्षों में 31 करोड़ रुपये का घाटा हो चुका है। छात्रों को नौ मई को निष्कासित कर दिया गया था, जिसके बाद अभिभावकों ने स्कूल की लंबित याचिका में एक आवेदन दायर किया था।

जुलाई 2024 में स्कूल ने उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के 18 जुलाई, 2024 के नोटिस को चुनौती दी थी। नोटिस में पुलिस उपायुक्त को स्कूल के खिलाफ किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।

Download Our App

Start you preparation journey for JEE / NEET for free today with our APP

  • Students300M+Students
  • College36,000+Colleges
  • Exams550+Exams
  • Ebooks1500+Ebooks
  • Certification16000+Certifications