संसद में भाजपा सांसद की मांग, स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रम में हो आपातकाल का उल्लेख

नरेश बंसल ने कहा कि भावी पीढ़ी को इस 'काले अध्याय' से अवगत कराने के लिए लोकतंत्र की बहाली के संघर्ष के इतिहास को स्वतंत्रता संग्राम की तरह स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

बंसल ने कहा कि सभी छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तकों में एक पाठ होना चाहिए कि आपातकाल क्या था? (इमेज-X/@sansad_tv)
बंसल ने कहा कि सभी छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तकों में एक पाठ होना चाहिए कि आपातकाल क्या था? (इमेज-X/@sansad_tv)

Press Trust of India | July 22, 2024 | 02:40 PM IST

नई दिल्ली: राज्यसभा में भाजपा सांसद नरेश बंसल ने आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की बहाली के प्रयासों की तुलना स्वतंत्रता संग्राम से की। उन्होंने मांग की कि इस कालखंड के इतिहास को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान भाजपा सांसद ने कहा कि अगर आपातकाल को पाठ्यपुस्तकों में उचित स्थान दिया जाए तो देश में लोकतांत्रिक ताकतों का विकास होगा और लोकतंत्र की जड़ें भी मजबूत होंगी।

आपातकाल को भारत के लोकतंत्र का 'काला अध्याय' करार देते हुए सांसद ने कहा कि इसे कभी नहीं बुलाया जा सकता, क्योंकि उस समय के 'रक्षक' ही भक्षक बन गए थे।' उन्होंने कहा, "1975 में आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों और इस दमन का विरोध करने वालों द्वारा लड़ी गई लड़ाई को समझाने वाला एक अध्याय स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।"

बंसल ने कहा कि सभी छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तकों में एक पाठ होना चाहिए कि आपातकाल क्या था, इसे कैसे और क्यों लगाया गया। उन्होंने कहा, ‘‘छात्रों को आपातकाल के बारे में जानना चाहिए। उन बलिदानियों के संघर्ष को वर्तमान और भावी पीढ़ी जान सके, इसलिए आपातकाल की संपूर्ण कथा बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल की जानी चाहिए।’’

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बंसल ने कहा कि भावी पीढ़ी को इस 'काले अध्याय' से अवगत कराने के लिए लोकतंत्र की बहाली के संघर्ष के इतिहास को स्वतंत्रता संग्राम की तरह स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपातकाल लगाकर तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने भारत के संविधान का गला घोंटा था और देश के लोकतंत्र को कलंकित किया था।

उत्तराखंड से भाजपा के सदस्य बंसल ने कहा, ‘‘आपातकाल में नागरिक स्वतंत्रता का हनन, सहमति का दमन और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कुचला गया था। इसके साथ ही हजारों लोगों को बिना कारण के जेलों में ठूंस दिया गया। देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए अनेक लोगों ने बलिदान दिया।’’

उन्होंने कहा कि आपातकाल का दौर लोकतांत्रिक सेनानियों के लिए एक दुःस्वप्न था और आज भी इसे याद करके उनकी आंखें नम हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान विपक्ष के अधिकांश नेता भी आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों के शिकार हैं। बता दें कि देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया गया था। यह 21 मार्च 1977 तक यानी 21 महीने तक लागू रहा। हाल ही में केंद्र सरकार ने 25 दिसंबर को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की है।

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