AIIMS Study: दिल्ली के छात्रों में मोटापा सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों में 5 गुना अधिक - रिपोर्ट
अध्ययन से पता चला कि सरकारी स्कूलों के छात्रों में निजी स्कूलों के छात्रों की तुलना में वजन संबंधी समस्याएं कम होती हैं।
Press Trust of India | May 30, 2025 | 06:30 PM IST
नई दिल्ली: दिल्ली में स्कूल जाने वाले किशोर बच्चों में मोटापे की प्रबलता सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों में पांच गुना अधिक है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक नए अध्ययन में यह जानकारी दी गई है। उल्लेखनीय है कि दोनों प्रकार के स्कूलों में लड़कियों की तुलना में लड़कों में मोटापे की प्रबलता अधिक है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा वित्तपोषित इस अध्ययन में एम्स के एंडोक्राइनोलॉजी, कार्डियक बायोकेमिस्ट्री और बायोस्टैटिस्टिक्स विभागों के शोधकर्ता शामिल थे। उन्होंने 6 से 19 वर्ष की आयु के 3,888 छात्रों की स्वास्थ्य स्थिति पर नजर रखी, जिनमें से 1,985 सरकारी स्कूलों से और 1,903 निजी स्कूलों से थे।
टीम ने रक्तचाप (बीपी), कमर की मोटाई, फास्टिंग ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को देखा। उन्होंने अध्ययन के उद्देश्यों, अपेक्षित परिणामों और इसके संभावित प्रभाव को समझाने के लिए प्रत्येक स्कूल के प्रधानाध्यापकों से मुलाकात की, ताकि तालमेल और विश्वास स्थापित किया जा सके।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘निष्कर्षों से पता चला है कि कम वजन वाले छात्रों की संख्या निजी स्कूल के छात्रों की तुलना में सरकारी स्कूल में लगभग पांच गुना अधिक थी। साथ ही, मोटापा सरकारी स्कूल के छात्रों की तुलना में निजी स्कूलों में पांच गुना अधिक था।’’
अध्ययन में कहा गया है कि भारत में मोटापे पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव के बारे में आंकड़ें कम हैं, और कम वजन के बारे में आंकड़े और भी कम है। इसके अलावा, महामारी से पहले स्कूल जाने वाले बच्चों और किशोरों में अधिक वजन (2.28%- 21.90%) और मोटापे (2.40% - 17.60%) की दरों में क्षेत्रीय असमानता देखी गई थी।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि 10 से 19 वर्ष की आयु के शहरी किशोरों में उच्च रक्तचाप की प्रबलता सात प्रतिशत से अधिक पाई गई, जबकि सरकारी और निजी स्कूल के विद्यार्थियों या लड़के एवं लड़कियों के बीच कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था।
अध्ययन से पता चला कि सरकारी स्कूलों के छात्रों में निजी स्कूलों के छात्रों की तुलना में वजन संबंधी समस्याएं कम होती हैं, लेकिन उनमें मेटाबोलिक सिंड्रोम विकसित होने की आशंका अधिक होती है, जो ऐसी स्थितियों का समूह है जो हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप-2 मधुमेह के जोखिम को बढ़ाता है।
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