एकल न्यायाधीश ने दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय में तीसरे सेमेस्टर के बैचलर ऑफ लॉ (LLB) की परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगने वाली छात्रा की याचिका को खारिज कर दिया।
Press Trust of India | February 25, 2025 | 03:37 PM IST
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यूनतम उपस्थिति मानदंड से कम होने के बावजूद एलएलबी परीक्षा में बैठने की अनुमति देने की एक छात्रा की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि व्यावसायिक डिग्री पाठ्यक्रमों में छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी ‘‘गंभीरता और परिश्रम’’ के साथ करनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गडेला की पीठ ने एक छात्रा की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी।
एकल न्यायाधीश ने दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय में तीसरे सेमेस्टर के बैचलर ऑफ लॉज (LLB) की परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगने वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 21 फरवरी को पारित और मंगलवार को अपलोड किए गए आदेश में कहा, ‘‘एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए तर्क से सहमत होते हुए, हम भी यह राय रखते हैं कि ऐसे व्यावसायिक डिग्री पाठ्यक्रमों में अध्ययन करने वाले छात्रों को उक्त पाठ्यक्रमों को पूरी गंभीरता और परिश्रम के साथ करना चाहिए।’’
खंडपीठ ने कहा, ‘‘ऐसी कठोरता अपवाद हो सकती है, जिसे सभी संभावनाओं में नियमों में ही निर्धारित किया जाना चाहिए।’’ खंडपीठ ने कहा कि सामान्यतः उपस्थिति में कमी को केवल पूछ कर माफ नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि कोई अत्यावश्यक या अपरिहार्य परिस्थितियां जैसे कि चिकित्सा आपातस्थितियां उत्पन्न न हो जाएं। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में, ऐसा कोई अपवाद नहीं बताया गया है। याचिकाकर्ता छात्रा ने दावा किया कि वह एलएलबी कर रही है और तीसरे सेमेस्टर में नामांकित है।
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छात्रा के मुताबिक, 22 दिसंबर, 2024 को, अधिकारियों ने परीक्षा देने से वंचित किए जाने वाले छात्रों की एक प्रोविजनल सूची जारी की, जिसमें उन सभी छात्रों को अधिसूचित किया गया जो न्यूनतम उपस्थिति मानदंड को पूरा करने में असमर्थ थे। उसने कहा कि प्रोविजनल सूची में न होने के बावजूद उसका नाम 4 जनवरी को जारी अंतिम सूची में शामिल किया गया था और उसे परीक्षा का एडमिट कार्ड जारी नहीं किया गया था। छात्रा ने सूची से अपना नाम हटाने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
खंडपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता छात्रा को तब उपस्थिति की कमी के बारे में जानकारी थी जब उसने समय पर बकाया शुल्क जमा किया था। खंडपीठ ने कहा ‘‘स्पष्ट रूप से, उपचारात्मक कक्षाओं में भाग लेने के बावजूद, यह रिकॉर्ड में है कि उसकी कुल उपस्थिति का प्रतिशत केवल 54 प्रतिशत है। इसे एकल न्यायाधीश ने विवादित आदेश में स्पष्ट रूप से दर्ज किया है।’’
साथ ही खंडपीठ ने कहा, ‘‘प्रतिवादी या विश्वविद्यालय के नियम किसी विशेष सेमेस्टर परीक्षा में भाग लेने की पात्रता के लिए 70 प्रतिशत उपस्थिति निर्धारित करते हैं।’’ खंडपीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने अदालत के पिछले निर्णयों पर भरोसा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित उपस्थिति का प्रतिशत नियत मानक है और इसे किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता। एकल न्यायाधीश ने यह भी माना कि एलएलबी पाठ्यक्रम एक पेशेवर डिग्री होने के नाते, एक नियमित डिग्री पाठ्यक्रम की तुलना में अधिक गंभीर अध्ययन की आवश्यकता है।