RTE: शिक्षा का अधिकार सकारात्मक कार्रवाई का उदाहरण है, इसने लोगों का जीवन बदला - पूर्व सीजेआई यू यू ललित

Abhay Pratap Singh | November 16, 2025 | 03:23 PM IST | 2 mins read

सरकार ने 1997 में एक विधेयक पेश किया जिसमें शिक्षा को 14 वर्ष की उम्र तक नागरिकों का मौलिक अधिकार बनाने का प्रावधान था।

पूर्व सीजेआई यू यू ललित ने कहा - साक्षरता दर आज कम से कम 80 प्रतिशत है और इसकी शुरुआत संविधान से हुई। (प्रतीकात्मक-फ्रीपिक)
पूर्व सीजेआई यू यू ललित ने कहा - साक्षरता दर आज कम से कम 80 प्रतिशत है और इसकी शुरुआत संविधान से हुई। (प्रतीकात्मक-फ्रीपिक)

नई दिल्ली: पूर्व प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित ने कहा कि शिक्षा का अधिकार (Right to Education) एक मौलिक अधिकार बन गया है और यह सकारात्मक कार्रवाई का एक उदाहरण है जिसने नागरिकों के जीवन को बदल दिया है। राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के ऑनलाइन शो ‘दिल से विद कपिल सिब्बल’ की 100वीं कड़ी प्रसारित होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने शिक्षा के अधिकार की इसके समावेशी स्वरूप के लिए सराहना की।

उन्होंने कहा, ‘‘जब हमें आजादी मिली थी तब देश के 18 प्रतिशत से भी कम लोग साक्षर थे। साक्षरता दर जो लगभग 18 प्रतिशत थी आज वह कम से कम 80 प्रतिशत है और इसकी शुरुआत संविधान से हुई।’’

न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि संविधान निर्माताओं के दो विचार थे: पहला यह कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार प्रत्येक नागरिक को शिक्षा में सुधार के अवसर प्रदान करे और दूसरा यह कि राज्य 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करे।

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उन्होंने कहा कि एक निजी चिकित्सा संस्थान की उच्च ‘कैपिटेशन फीस’ से संबंधित 1992 के मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य मामले में शीर्ष अदालत ने माना था कि शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक अनिवार्य पहलू है। प्रवेश के लिए या किसी भी शैक्षिक सेवा के लिए आधिकारिक शुल्क से अतिरिक्त राशि लेने को ‘कैपिटेशन फीस’ कहते हैं, यह अक्सर उन संस्थानों में होता है जहां प्रवेश पाना कठिन होता है।

पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इसके बाद सरकार ने 1997 में एक विधेयक पेश किया जिसमें शिक्षा को 14 वर्ष की उम्र तक नागरिकों का मौलिक अधिकार बनाने का प्रावधान था।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे विचार से यह एकमात्र उदाहरण है जहां न्यायपालिका और विधायिका ने मिलकर अपनी भूमिका निभाई। अन्यथा, संविधान के पहले संशोधन से ही उनके बीच हमेशा से ही टकराव रहा है।’’ न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि 1999 में सत्ता संभालने वाली नयी सरकार ने 2002 में संविधान में अनुच्छेद 21ए जोड़ा, जिससे शिक्षा का अधिकार छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मौलिक अधिकार बन गया।

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