Press Trust of India | October 16, 2025 | 09:25 AM IST | 1 min read
याचिका में कहा गया कि शिक्षकों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शुरू की गई शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) गैर-अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू होती हैं, लेकिन अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होती।
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा (RTE) से संबंधित एक याचिका उचित आदेशों के लिए भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) को भेजी गई है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कहा कि आरटीई अधिनियम से संबंधित ऐसा ही एक मुद्दा उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है।
पीठ नितिन उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि धार्मिक व धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह की शिक्षा देने वाले स्कूल भी आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत लाए जाएं। जिसके बाद अल्पसंख्यकों के स्कूलों को आरटीई अधिनियम के दायरे में लाने की याचिका सीजेआई को भेजी गई।
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अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) की वैधता को भी चुनौती दी गई है। याचिका में दावा किया गया है कि ये धाराएं मनमानी हैं और अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) समेत संविधान के विभिन्न प्रावधानों के विपरीत हैं।
याचिका में कहा गया है कि शिक्षकों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शुरू की गई शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) गैर-अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू होती हैं, लेकिन अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होती। याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका दायर कर यह रिट आदेश या निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है कि आरटीई अधिनियम और शिक्षक पात्रता परीक्षा सभी स्कूलों पर समान रूप से लागू किए जाएं।