Pre Budget 2025: स्कूल को फिर से नया रूप देने के लिए आवश्यक नवाचारों में निवेश की आवश्यकता
Abhay Pratap Singh | January 29, 2025 | 03:57 PM IST | 3 mins read
चीन और अमेरिका AI शिक्षा में भारी निवेश कर रहे हैं और अमेरिकी सरकार K-12 शिक्षा में AI एकीकरण का सक्रिय रूप से समर्थन कर रही है। भारत को प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अपना निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है।
नई दिल्ली: केंद्रीय बजट 2025 कुछ ही दिनों में जारी होने वाला है। नीति निर्माता और पेशेवर लोग इसमें कई चीजें जैसे बुनियादी ढांचा, डिजिटल निवेश, उच्च शिक्षा, शोध और डिजाइन तथा शिक्षक विकास जोड़ने की मांग कर रहे हैं। द सर्कल इंडिया के संस्थापक संदीप राय का कहना है कि हमें स्कूल को फिर से नया रूप देने के लिए आवश्यक नवाचारों में निवेश करने की आवश्यकता है।
द सर्कल इंडिया के संदीप राय ने आगे कहा कि भारत बाकी दुनिया के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहा है, अपनी मौजूदा गति से हम कभी भी उस दौड़ को नहीं जीत पाएंगे। हमें छलांग लगानी होगी। इसलिए हमें प्रौद्योगिकी और शिक्षा के बीच, 21वीं सदी के कौशल और आज के स्कूलों के बीच, कार्यबल की जरूरतों और शिक्षाविदों के बीच को समाप्त करने के लिए निवेश की जरूरत है।
GeniusMentor की संस्थापक और सीईओ मृदु अंडोत्रा ने प्री-बजट 2025 पर कहा, “मेरा मानना है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली तकनीकी क्रांति के शिखर पर है। भारत के युवाओं को सही मायने में सशक्त बनाने और राष्ट्र को एआई के क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए आगामी बजट में स्कूलों और कॉलेजों में एआई के लिए समर्पित बजट आवंटन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।”
मृदु अंडोत्रा ने आगे कहा, समग्र शिक्षा बजट में 5-10% तक की वृद्धि की आवश्यकता है। इस निवेश को स्कूलों और कॉलेजों में हाई-स्पीड इंटरनेट एक्सेस, एडवांस डिजिटल टूल और एआई लैब सहित अत्याधुनिक एआई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत को प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अपने निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है।
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द एकेडमी स्कूल पुणे की सीईओ डॉ. मैथिली तांबे ने प्री बजट 2025 पर बात करते हुए कहा, “कुल बजट का 6% शिक्षा के लिए आवंटित करना महज एक आंकड़ा नहीं है। यह ज्ञान और कुशल कार्यबल के निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। निवेश का यह स्तर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।”
डॉ. मैथिली ने आगे कहा, “पर्याप्त धनराशि व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा दे सकती है जो छात्रों को उद्योग की जरूरतों के अनुरूप व्यावहारिक कौशल से लैस करते हैं, जिससे बेरोजगारी कम होती है और युवाओं को सशक्त बनाया जाता है। बजटीय आवंटन के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र वास्तव में जीवन को बदल सकता है और पूरे देश में प्रगति को गति दे सकता है।”
शिव नादर विश्वविद्यालय (दिल्ली-एनसीआर) के अर्थशास्त्र के प्रो डॉ पार्थ चटर्जी ने कहा, “भारत में लगभग 40% आबादी 25 वर्ष से कम है या ऐसी उम्र में है जहां वे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इतनी बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षित करने के लिए कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। शिक्षा और अनुसंधान बजट में वृद्धि होनी चाहिए, अभी जीडीपी के 2.9% पर इस फंडिंग को बढ़ाने के लिए बहुत जगह है।”
प्रो चटर्जी ने आगे कहा कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को वास्तव में बहु-विषयक बनने के लिए धन आवंटित किया जाना चाहिए। अनुसंधान में अच्छा प्रदर्शन, बड़ी आबादी को पढ़ाने के लिए संकाय सदस्य और पीएचडी छात्रवृत्ति के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता है। बजट में निजी फंडिंग को और अधिक सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए।
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