Pre Budget 2025: शिक्षा पर केंद्रित बजट रोजगार क्षमता और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देगा

भारत को अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने का एकमात्र तरीका शिक्षा प्रणाली में बजटीय परिव्यय में वृद्धि करना है।

शिक्षाविद ने शिक्षा बजट बढ़ाने पर जोर दिया है। (प्रतीकात्मक-फ्रीपिक)
शिक्षाविद ने शिक्षा बजट बढ़ाने पर जोर दिया है। (प्रतीकात्मक-फ्रीपिक)

Abhay Pratap Singh | January 16, 2025 | 03:58 PM IST

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी, 2025 को केंद्रीय बजट 2025 पेश कर सकती हैं। वित्त मंत्री सीतारमण द्वारा पेश किया जाने वाला यह 8वां बजट होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा को बढ़ावा देने पर केंद्रित यह बजट रोजगार क्षमता और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के साथ ही भारत के लिए अधिक समृद्ध और न्यायसंगत भविष्य की नींव भी रखेगा।

एक्सएलआरआई दिल्ली-एनसीआर के निदेशक डॉ केएस कैसिमिर ने उच्च शिक्षा और मानव पूंजी में रणनीतिक निवेश के महत्व पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि, हमारा मानना है कि उनकी अंतर्दृष्टि भारत के सामाजिक-आर्थिक भविष्य को आकार देने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर चल रहे विमर्श से मेल खाती है।

डॉ केएस कैसिमिर ने बताया कि आगामी बजट को देखते हुए हमारी आशा है कि सरकार मानव पूंजी में रणनीतिक निवेश को प्राथमिकता देगी तथा टिकाऊ और समावेशी आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देगी।

इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कौशल विकास पहलुओं के लिए मजबूत समर्थन शामिल है, जो उद्योग की उभरती मांगों के अनुरूप है, बढ़ी हुई फंडिंग और उद्योग-अकादमिक भागीदारी के माध्यम से एक संपन्न अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना और सभी स्तरों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करना है।

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कैसिमिर ने बताया कि हमारा मानना है कि हमारे युवाओं को संबंधित कौशल के साथ सशक्त बनाने, नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने और समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने पर केंद्रित बजट न केवल रोजगार क्षमता को बढ़ाएगा और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत के लिए अधिक समृद्ध और न्यायसंगत भविष्य की नींव भी रखेगा।

संस्कृति ग्रुप ऑफ स्कूल्स, पुणे के ट्रस्टी और शिक्षाविद् प्रणीत मुंगाली के अनुसार, “शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कुल बजटीय व्यय 4% से भी कम है और इसे बढ़ाकर 6% करने की आवश्यकता है, क्योंकि केंद्र सरकार शिक्षा पर कुल सरकारी व्यय का केवल एक-चौथाई ही वहन करती है, जबकि शेष तीन-चौथाई व्यय राज्यों द्वारा किया जाता है।”

प्रणीत मुंगाली ने बताया कि, “जटीय परिव्यय में यह वृद्धि अनुसंधान एवं विकास पर व्यय बढ़ाने के साथ-साथ निजी क्षेत्र को R&D पर व्यय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में होनी चाहिए। भारत का वर्तमान अनुसंधान एवं विकास पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 0.65% है; यह ब्रिक्स में हमारे समकक्षों से कम है और वैश्विक औसत 1.5% से भी काफी नीचे है।

उन्होंने आगे कहा कि, हम एक ऐसे युग परिवर्तन के मुहाने पर खड़े हैं, जहां एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, CRISPR और इसी तरह की क्रांतिकारी विघटनकारी प्रौद्योगिकियां वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को बदल देंगी। भारत अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने का एकमात्र तरीका शिक्षा प्रणाली में बजटीय परिव्यय को बढ़ाना है।

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