कपड़ा और डाई जैसे उद्योगों के वेस्ट वाटर में अक्सर हानिकारक डाइज होते हैं, जिन्हें आम फिल्ट्रेशन पद्धतियों से निकालना मुश्किल होता है। बिस्मार्क ब्राउन आर जैसे डाइज इतने बारीक होते हैं कि माइक्रोफिल्ट्रेशन मेम्ब्रेन (झिल्ली) से आसानी से निकल जाते हैं और इसलिए इनका ट्रीटमेंट विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण
Saurabh Pandey | January 30, 2025 | 06:38 PM IST
नई दिल्ली : राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला के शोधकर्ता विभिन्न उद्योगों के वेस्टवाटर (अपशिष्ट जल) में बिस्मार्क ब्राउन आर जैसे डाइज (रंगों) के प्रदूषण को देखते हुए एक कारगर इनोवेटिव वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्रक्रिया विकसित की है। केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सुजित सेन की देखरेख में कार्यरत रिसर्च टीम में डॉ. मधुमिता मन्ना ( अनुसंधान स्नातक, एनआईटी राउरकेला) और प्रोफेसर बिनय कांति दत्ता (पूर्व प्रोफेसर, आईआईटी खरगपुर) ने डाई हटाने की क्षमता बढ़ाने के लिए नैनोकंपोजिट-आधारित सिरेमिक मेम्ब्रेन को माइक्रोबबल तकनीक से जोड़ कर एक नवोन्मेषी तरीका विकसित किया है।
इस रिसर्च के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, डीएसटी भारत (अब अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन, भारत) का सहयोग मिला है और यह प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुआ है। इस तकनीक के लिए रिसर्च टीम को पेटेंट भी दिया गया है (पेटेंट संख्या 542891, आवेदन संख्या 202331030218, प्रदान करने की तिथि 25 जून 2024)।
कपड़ा और डाई जैसे उद्योगों के वेस्ट वाटर में अक्सर हानिकारक डाइज होते हैं, जिन्हें आम फिल्ट्रेशन पद्धतियों से निकालना मुश्किल होता है। बिस्मार्क ब्राउन आर जैसे डाइज इतने बारीक होते हैं कि माइक्रोफिल्ट्रेशन मेम्ब्रेन (झिल्ली) से आसानी से निकल जाते हैं और इसलिए इनका ट्रीटमेंट विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
ये डाइज पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है, क्योंकि इसमें गहरे रंग और संभावित कार्सिनोजेनिक प्रॉपर्टीज (कैंसरकारी गुण) होते है। परंपरागत ट्रीटमेंट जो अल्ट्रावायलेट लाइट (पराबैंगनी किरणें) पर निर्भर करतें हैं और बड़े पैमाने के अनुप्रयोगों में अक्सर नाकाम दिखते हैं। ऐसा खास कर पानी से डाई के कण अलग करने में देखा जाता है।
रिसर्च टीम ने इन चुनौतियों को दूर करने के लिए दो आधुनिक तकनीकों को आपस में जोड़ कर एक अत्याधुनिक ट्रीटमेंट सिस्टम बनाया है। पहली तकनीक एक सिरेमिक मेम्ब्रेन है, जिस पर जिओलाइट और जिंक ऑक्साइड नैनोकंपोजिट लेपित होती है, जो कि उद्योगों के वेस्ट (अपशिष्ट) में मिलते हैं। यह फोटोकैटलिस्ट प्रकाश के प्रभाव में डाई मोलेक्यूल्स को तोड़ने में सक्षम है।
दूसरी तकनीक में एक सामान्य एयर डिफ्यूजर में बनने वाले माइक्रोबबल्स होते हैं, जो अधिक मास ट्रांस्फर करते और टूटने की प्रक्रिया को बेहतर बनाते हैं। इसके लिए एक निरंतर टैंजेंशियल फ्लो मेम्ब्रेन फोटोरिएक्टर का डिजाइन किया गया और इसका परीक्षण एक स्थानीय डाई कारखाने के सिमुलेटेड और वास्तविक वेस्टवाटर दोनों पर किया गया था।
इस रिसर्च की अहमियत बताते हुए प्रो. सुजित सेन ने कहा कि हमारा हाइब्रिड सिस्टम सिर्फ 90 मिनट में बिस्मार्क ब्राउन आर के 95.4 प्रतिशत डीकलराइजेशन और 94 प्रतिशत रासायनिक ऑक्सीजन मांग (केमिकल सीओडी) दूर करने में सफल रहा है। दिखाई देने वाले प्रकाश के प्रभाव में नैनोकंपोजिट के बेहतर परिणाम मिले हैं। इसलिए यह सिस्टम वेस्टवाटर ट्रीटमेंट के व्यावहारिक उपयोगों के लिए उपयुक्त है।