Press Trust of India | December 19, 2025 | 08:21 AM IST | 2 mins read
International Ramayana Conference: अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि आधुनिक शिक्षा को रामायण के मूल्यों को समझने और आत्मसात करने जरूरत है।

देहरादून: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), रुड़की में 18 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन (International Ramayana Conference) शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य शिक्षा में इसके महत्व को बताना है। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में भारत के अलावा विदेशों से आए विद्वान, संत और शोधकर्ता भारतीय ज्ञान परंपरा पर विचार विमर्श करेंगे। सम्मेलन में करीब 150 शोध पत्र पेश किए जाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि आधुनिक शिक्षा को रामायण के मूल्यों को समझने और आत्मसात करने जरूरत है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मकसद सिर्फ आजीविका कमाना नहीं है बल्कि मानवता की सेवा करना है। यह सम्मेलन आईआईटी रुड़की और श्री रामचरित भवन, अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जा रहा है।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर के.के. पंत ने बताया कि उनके संस्थान का कुलगीत भी कवि गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस की चौपाई से प्रेरित है। उन्होंने कहा, ‘‘रामचरितमानस की पंक्ति ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ और आईआईटी रुड़की का कुलगीत ‘सर्जन हित जीवन नित अर्पित’ दोनों समाज सेवा के महत्व को रेखांकित करते हैं।’’ पंत ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के सिद्धांत अमूल्य हैं।
उन्होंने रामायण के मूल्यों, माता-पिता के प्रति कर्तव्य, सामाजिक जिम्मेदारी, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और ‘रामराज्य के आदर्श’ को सतत विकास, स्वास्थ्य, नैतिकता एवं राष्ट्र-निर्माण जैसे समकालीन विषयों से जोड़ते हुए युवाओं से आग्रह किया कि वे ज्ञान को केवल उच्च वेतन प्राप्ति का साधन न मानकर समाज की सेवा एवं ‘विकसित भारत 2047’ के निर्माण का माध्यम समझें।
संत महामंडलेश्वर स्वामी हरि चेतनानंद ने मोबाइल फोन और भौतिक चीजो के पीछे भागने वाले इस दौर में चरित्र निर्माण और आंतरिक सुख के लिए रामायण, महाभारत और दूसरे धर्मग्रंथों के महत्व के बारे में बताया। उद्घाटन सत्र में ‘गीता शब्द अनुक्रमणिका’ (गीता शब्द इंडेक्स) का विमोचन भी किया गया।
श्री रामचरित भवन के संस्थापक एवं ह्यूस्टन–डाउनटाउन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओम प्रकाश गुप्ता ने कहा कि रामायण एवं संबंधित आध्यात्मिक साहित्य पर आधारित लगभग 150 शोध पत्र सम्मेलन में प्रस्तुत किए जाएंगे। प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान प्रो. महावीर अग्रवाल को संस्कृत साहित्य और भारतीय ज्ञान परंपराओं में पांच दशकों तक शिक्षण, अनुसंधान और सेवा के लिए मरणोपरांत ‘रामायण रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।