Saurabh Pandey | June 19, 2025 | 02:21 PM IST | 2 mins read
यह प्रणाली प्रतिदिन 20,000 लीटर पानी को साफ कर सकती है, जिससे 94% आयरन और 89% फ्लोराइड को हटाया जा सकता है।
नई दिल्ली : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने सामुदायिक स्तर पर जल उपचार प्रणाली विकसित की है, जो भूजल से फ्लोराइड और आयरन को हटाती है। यह प्रणाली प्रतिदिन 20,000 लीटर तक दूषित पानी का उपचार कर सकती है, जो सुरक्षित पेयजल की खराब पहुंच वाले क्षेत्रों के लिए कम लागत वाला समाधान प्रदान करती है।
इस शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित एसीएस ईएसएंडटी वाटर जर्नल में प्रकाशित हुए हैं, जिसके सह-लेखक प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत, पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट्स डॉ. अन्वेषण और डॉ. पियाल मोंडल और आईआईटी गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोध विद्वान श्री मुकेश भारती हैं।
आईआईटी गुवाहाटी की शोध टीम ने 4-चरणीय प्रणाली विकसित की है जो दूषित जल उपचार के लिए लागत प्रभावी और ऊर्जा कुशल तकनीक सुनिश्चित करती है। इसमें दूषित जल निम्नलिखित प्रक्रिया से गुजरता है-
वातन (Aeration) - जो विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए एरेटर से शुरू होता है जो पानी में ऑक्सीजन जोड़ता है, जिससे घुले हुए लोहे को हटाने में मदद मिलती है।
इलेक्ट्रोकोएगुलेशन (Electrocoagulation) - इसके बाद पानी इलेक्ट्रोकोएगुलेशन यूनिट में चला जाता है, जहां एक हल्का विद्युत प्रवाह एल्युमिनियम इलेक्ट्रोड से होकर गुजरता है। इस प्रक्रिया से आवेशित धातु के कण (आयन) निकलते हैं जो दूषित पदार्थों को आकर्षित करते हैं और उनसे जुड़ जाते हैं।
फ्लोक्यूलेशन और सेटिंग (Flocculation and setting) - इस प्रक्रिया में, संदूषकों से बंधे आवेशित आयन बड़े गुच्छे बनाते हैं। इन गुच्छों को फ्लोक्यूलेशन कक्ष में गाढ़ा किया जाता है और जमने दिया जाता है।
निस्पंदन (Filtration)- एकत्रीकरण के बैठ जाने के बाद, पानी शेष अशुद्धियों को हटाने के लिए कोयला, रेत और बजरी से बने बहु-परत फिल्टर से होकर गुजरता है।
आईआईटी गुवाहाटी द्वारा विकसित प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता इसकी लागत प्रभावशीलता है, जिसमें 1000 लीटर उपचारित जल की लागत 20 रुपये है, जिससे यह अत्यधिक किफायती है। विकसित तकनीक को न्यूनतम पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है और इसका अनुमानित जीवनकाल 15 वर्ष है, जिसमें हर छह महीने में इलेक्ट्रोड प्रतिस्थापन निर्धारित है।
फ्लोराइड, एक खनिज जो आमतौर पर दंत चिकित्सा उत्पादों, कीटनाशकों, उर्वरकों और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग किया जाता है, या तो प्राकृतिक रूप से या कृषि और विनिर्माण जैसी मानवीय गतिविधियों के माध्यम से भूजल में प्रवेश कर सकता है। अत्यधिक फ्लोराइड की उपस्थिति वाले पानी के सेवन से स्केलेटल-फ्लोरोसिस हो सकता है, जो एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें हड्डियाँ सख्त हो जाती हैं और जोड़ अकड़ जाते हैं, जिससे शारीरिक गतिविधि मुश्किल और दर्दनाक हो जाती है। भारत में, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और गुजरात सहित अन्य राज्यों में भूजल में फ्लोराइड का उच्च स्तर है।