Press Trust of India | August 8, 2025 | 10:29 AM IST | 2 mins read
भारद्वाज ने दावा किया कि मौजूदा कानूनों और अदालती निर्देशों के तहत इन विद्यालयों को शुल्क में वृद्धि करने से पहले शिक्षा निदेशक से अनुमति लेना अनिवार्य है।
नई दिल्ली: दिल्ली के सभी निजी और गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को अब फीस बढ़ाने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी। शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने बताया कि पहले यह नियम केवल सरकारी आवंटित भूमि पर बने लगभग 350 स्कूलों पर ही लागू था, लेकिन 'दिल्ली स्कूल शिक्षा (शुल्क निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025' के लागू होने के बाद, यह प्रावधान शहर भर के सभी निजी स्कूलों पर लागू होगा, जिससे मनमानी फीस वृद्धि पर रोक लगेगी।
इस विधेयक को सोमवार (4 अगस्त) को विधानसभा में पेश किया गया था। मंत्री आशीष सूद ने दोहराया, ‘‘यह विधेयक महज औपचारिकता नहीं है। यह अभिभावकों से वादा है कि अब फीस संरचना में मनमाने ढंग से हेरफेर नहीं किया जाएगा।’’
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ‘‘नया कानून मौजूदा प्रणाली की विभिन्न कमियों को भी दूर करता है, जो दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियम, 1973 (डीएसईएआर) और कई अदालती फैसलों पर आधारित है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि पुराने नियम ज्यादातर सरकारी भूमि पर बने विद्यालयों पर लागू होते थे, जिनकी आवंटन की शर्तें विशिष्ट थीं। इसकी वजह से बड़ी संख्या में स्कूल शुल्क विनियमन के दायरे से बाहर थे।
जानकारी के मुताबिक लगभग 1,443 निजी विद्यालय हैं जिनमें से अधिकांश निजी भूमि पर या बिना किसी शर्त के सरकारी भूमि पर स्थित हैं और वर्षों से नियमन से परे रहे हैं। दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने विधेयक को ध्यान भटकाने वाला बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह विधेयक 350 से ज़्यादा निजी विद्यालयों को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के उन फैसलों से बचाने के लिए बनाया गया है, जिनके तहत पहले उनकी शुल्क संरचना पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी।’’
भारद्वाज ने दावा किया कि मौजूदा कानूनों और अदालती निर्देशों के तहत इन विद्यालयों को शुल्क में वृद्धि करने से पहले शिक्षा निदेशक से अनुमति लेना अनिवार्य है। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह विधेयक इन शर्तों को समाप्त करने का प्रयास है।’’
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Santosh Kumar