आईआईएम लखनऊ की रिसर्च- रोजगार पैटर्न में लैंगिक असमानता व उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है

Abhay Pratap Singh | February 14, 2024 | 05:02 PM IST | 1 min read

शोध में पाया गया कि अधिक आर्थिक क्षमता वाले गैर-कृषि क्षेत्रों ने अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने की अपनी क्षमता के बावजूद नियुक्तियों के प्रति कम रुझान प्रदर्शित किया।

आईआईएम लखनऊ के प्रोफेसर डी. त्रिपति राव के नेतृत्व में यह शोध किया गया।
आईआईएम लखनऊ के प्रोफेसर डी. त्रिपति राव के नेतृत्व में यह शोध किया गया।

नई दिल्ली: भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) लखनऊ के प्रो. डी. त्रिपति राव ने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी व कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के शोधकर्ताओं के सहयोग से एक अध्ययन किया। जिसमें पता चला कि 2004-05 से भारत की आर्थिक वृद्धि के बावजूद 2017-18 तक रोजगार के अवसर देश की बढ़ती कामकाजी उम्र की आबादी से पीछे है।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) रोजगार व बेरोजगारी सर्वेक्षण और सामयिक श्रम बल सर्वेक्षण डैशबोर्ड के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि कृषि क्षेत्र सबसे अधिक युवाओं को रोजगार देता है। अधिक आर्थिक क्षमता वाले गैर-कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने की अपनी क्षमता के बावजूद नियुक्तियों के प्रति उनका रुझान कम रहा।

आईआईएम लखनऊ के बिजनेस एनवायरनमेंट में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डी. त्रिपति राव, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के डॉ. टी. त्रिवेणी व बिट्स पिलानी के प्रोफेसर बालकृष्ण पाधी के नेतृत्व में यह शोध किया गया।

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प्रोफेसर डी. त्रिपति राव ने कहा, “अधिक नौकरियों की जगह आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप श्रम विस्थापन हुआ है। सृजित नौकरियों की संख्या के साथ नौकरियों की गुणवत्ता और शालीनता की जांच करना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्पादकता और नौकरी के बीच एक मजबूत संबंध है।”

अध्ययन में बताया गया है कि 1990 के दशक में रोजगार में गिरावट शुरू हुई, जो 2004-05 में ठीक हो गई और 2011-12 में लगभग स्थिरता तक पहुंच गई। 2004-05 से 2017-18 तक आर्थिक विकास के बावजूद रोजगार के अवसरों में कमी रही। जहां कामकाजी उम्र की आबादी (15 से 64 वर्ष) में वृद्धि के बावजूद श्रमिकों का कम उपयोग हुआ। रोजगार पैटर्न में लैंगिक असमानता बनी हुई है और उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है।

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