आईआईटी रुड़की और सीईए ने विद्युत क्षेत्र में अनुसंधान और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एमओयू साइन किया
Abhay Pratap Singh | July 2, 2025 | 03:31 PM IST | 2 mins read
इस रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य आईआईटी रुड़की की शैक्षणिक और शोध क्षमताओं को सीईए की तकनीकी और विनियामक विशेषज्ञता के साथ समन्वित करना है।
नई दिल्ली: केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA), विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (IIT Roorkee) ने विद्युत क्षेत्र में अनुसंधान, योजना, नवाचार और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए। विद्युत मंत्रालय, सीईए एवं आईआईटी रुड़की के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
आधिकारिक प्रेस रिलीज के अनुसार, इस रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य आईआईटी रुड़की की शैक्षणिक और शोध क्षमताओं को सीईए की तकनीकी और विनियामक विशेषज्ञता के साथ समन्वित करना है, ताकि विद्युत क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों का समाधान किया जा सके और भारत के ऊर्जा परिवर्तन में सहायता की जा सके।
इस समझौता ज्ञापन के तहत, दोनों संस्थान मिलकर संयुक्त शोध परियोजनाओं पर कार्य करेंगे, जो विद्युत प्रणाली नियोजन, नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण, ग्रिड की विश्वसनीयता एवं लचीलापन तथा ऊर्जा भंडारण पर केंद्रित होंगी। साथ ही, तकनीकी अध्ययन और नीति विश्लेषण भी किए जाएंगे ताकि साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में सहायता मिल सके।
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इसके अतिरिक्त, सेमिनार, प्रशिक्षण कार्यक्रम, इंटर्नशिप और कार्यशालाओं जैसे ज्ञान-साझाकरण आयोजनों का संचालन किया जाएगा। विद्युत प्रणाली विश्लेषण और दीर्घकालिक योजना के लिए तकनीकी उपकरणों और सॉफ्टवेयर भी विकसित किया जाएगा। सीईए और अन्य विद्युत क्षेत्र की संस्थाओं के पेशेवरों के लिए विशेष क्षमता निर्माण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।
आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो केके पंत ने राष्ट्रीय विकास में योगदान देने की संस्थान की विरासत पर गर्व व्यक्त किया और विद्युत क्षेत्र में अनुप्रयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा व्यावसायिकों के कौशल विकास में इस साझेदारी के महत्व पर बल दिया।
इस अवसर पर बोलते हुए केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अध्यक्ष घनश्याम प्रसाद ने ऊर्जा क्षेत्र में टिकाऊ एवं नवीन समाधान प्राप्त करने में शिक्षा-सरकार सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। आधिकारिक बयान के अनुसार, यह समझौता भारत की ऊर्जा अवसंरचना को मजबूत करने तथा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप स्वच्छ, अधिक विश्वसनीय और आत्मनिर्भर विद्युत प्रणाली सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
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