अदालत ने कहा है कि खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 को वैध माना जाएगा और 29 मई, 2017 की यथास्थिति बहाल रहेगी।
Press Trust of India | October 4, 2024 | 12:12 PM IST
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अधिनियम, 2017 को “असंवैधानिक” करार देते हुए निरस्त कर दिया और कहा कि पंजाब के 16 निजी विश्वविद्यालयों को छोड़कर खालसा विश्वविद्यालय को इस कानून के दायरे में लाया गया। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि खालसा विश्वविद्यालय को कानून के दायरे में लाने का कोई उचित कारण नहीं बताया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 1 नवंबर 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया। हाईकोर्ट ने 17 जुलाई 2017 को लागू एक्ट को निरस्त करने की याचिका खारिज कर दी थी।
पीठ ने कहा कि पंजाब ने पंजाब निजी विश्वविद्यालय नीति, 2010 बनाई थी और 7 नवंबर, 2016 को राज्य विधानसभा ने खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 पारित किया था। न्यायालय ने कहा कि 30 मई, 2017 को राज्य सरकार ने 2016 अधिनियम को निरस्त करने के लिए अध्यादेश जारी किया था।
पीठ ने कहा कि 2017 के अधिनियम को जुलाई 2017 में राज्यपाल की मंजूरी मिल गई थी। फैसले में कहा गया कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया कि खालसा विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले इस कानून को बनाने की अचानक आवश्यकता क्यों पड़ी।
पीठ ने कहा, "हमने पाया कि विवादित अधिनियम के कारण विश्वविद्यालय को राज्य के 16 निजी विश्वविद्यालयों से बाहर रखा गया, लेकिन इसके लिए कोई उचित कारण नहीं बताया गया। इसलिए यह अधिनियम भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।"
पीठ ने कहा कि 1892 में स्थापित खालसा कॉलेज खालसा विश्वविद्यालय का हिस्सा नहीं है। पीठ ने कहा कि गैर-मौजूद आधार पर पारित 2017 का अधिनियम "स्पष्ट मनमानी" को बढ़ावा देगा और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करेगा।
पीठ ने कहा, "खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अधिनियम, 2017 को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त किया जा रहा है। यह भी निर्देश दिया जाता है कि खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 को वैध माना जाएगा और 29 मई, 2017 की यथास्थिति बहाल की जाएगी।"