आईआईटी गुवाहाटी के अनुसंधानकर्ताओं ने पानी और मानव कोशिकाओं में साइनाइड का पता लगाने वाला सेंसर विकसित किया
यह सेंसर न केवल तेजी से साइनाइड का पता लगाने को संभव बनाता है, बल्कि ‘डिजिटल लॉजिक सर्किट’ का उपयोग करके उन्नत सेंसर-आधारित उन्नत स्मार्ट उपकरणों के विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
Press Trust of India | May 19, 2025 | 06:45 PM IST
नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी (IIT Guwahati) के अनुसंधानकर्ताओं ने एक अत्यधिक संवेदनशील ‘फ्लोरेसेंट सेंसर’ विकसित किया है, जो केवल पराबैंगनी प्रकाश स्रोत का उपयोग करके पानी और मानव कोशिकाओं में साइनाइड का पता लगा सकता है। यह सेंसर वास्तविक नमूनों, जैसे नदी के पानी और स्तन कैंसर कोशिकाओं में प्रभावी रूप से काम करता है और इसे ‘पेपर स्ट्रिप’ के साथ परीक्षण के लिए उपयुक्त माना गया है।
‘स्पेक्ट्रोकिमिका एक्टा पार्ट ए: मॉलिक्यूलर एंड बायोमॉलिक्यूलर स्पेक्ट्रोस्कोपी’ पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सेंसर न केवल तेजी से साइनाइड का पता लगाने को संभव बनाता है, बल्कि ‘डिजिटल लॉजिक सर्किट’ का उपयोग करके उन्नत सेंसर-आधारित उन्नत स्मार्ट उपकरणों के विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यह सेंसर रंग बदलता है और साइनाइड की उपस्थिति में चमकदार रोशनी उत्सर्जित करता है, जो पर्यावरण सुरक्षा और फॉरेंसिक जांच दोनों में योगदान देता है।
आईआईटी गुवाहाटी के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जी कृष्णमूर्ति के अनुसार, साइनाइड एक अत्यधिक जहरीला यौगिक है, जिसका व्यापक रूप से औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे सिंथेटिक फाइबर के उत्पादन, धातु की सफाई, प्लास्टिक, इलेक्ट्रोप्लेटिंग और सोने के खनन में उपयोग किया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘साइनाइड के अनुचित निपटान से अक्सर यह पर्यावरण में फैल जाता है, जिससे मिट्टी और जल स्रोत दूषित हो जाते हैं। इस दूषित पानी के सेवन से मानव शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो सकती है। इसकी थोड़ी सी मात्रा भी गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव या मृत्यु का कारण बन सकती है। इसलिए, ऐसे सेंसर विकसित करने की आवश्यकता है, जो विभिन्न सामग्रियों में साइनाइड की सूक्ष्म मात्रा का भी पता लगा सकें।’’
‘फ्लोरेसेंट केमोसेंसर’ ऐसे रसायन होते हैं, जो विशिष्ट रसायनों के साथ संपर्क में आने पर प्रकाश में चमकते हैं। ये सेंसर उपयोग में आसानी, कम लागत, उच्च संवेदनशीलता और जैविक प्रणालियों में उपयोग की क्षमता के कारण लोकप्रिय हैं।
उन्होंने कहा कि कई मौजूदा सेंसर पदार्थों का पता लगाने के दौरान अपनी रोशनी को कम करके (जिसे ‘टर्न-ऑफ’ प्रतिक्रिया के रूप में जाना जाता है) काम करते हैं, वहीं पदार्थों का पता लगाते समय ‘टर्न-ऑन’ प्रतिक्रिया अक्सर अधिक प्रभावी होती है जहां सिगनल चमकता है। आईआईटी, गुवाहाटी की टीम ने इसी दिशा में एक ‘टर्न-ऑन’ केमोसेंसर विकसित किया है, जो पराबैंगनी प्रकाश के तहत एक कमजोर नीली प्रतिदीप्ति उत्सर्जित करता है। साइनाइड की उपस्थिति में, यह प्रतिदीप्ति चालू हो जाती है और अणु में रासायनिक परिवर्तन के कारण चमकीले ‘स्यान रंग’ (नीले और हरे रंग का मिश्रण) में बदल जाती है।
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