Santosh Kumar | August 26, 2025 | 07:10 PM IST | 2 mins read
सर्वेक्षण में देश भर के 52,085 परिवारों और 57,742 छात्रों से डेटा एकत्र करने के लिए कंप्यूटर-सहायता प्राप्त व्यक्तिगत साक्षात्कार का उपयोग किया गया।
नई दिल्ली: देश के लगभग एक-तिहाई स्कूली छात्र निजी कोचिंग का सहारा लेते हैं और यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक दिखाई देती है। सेंटर ऑन एजुकेशन द्वारा किए गए व्यापक वार्षिक मॉड्यूलर सर्वेक्षण (सीएमएस) में यह बात सामने आई है। सर्वेक्षण के अनुसार, स्कूलों में नामांकित कुल छात्रों में से 55.9 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। यह दर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है, जहां दो-तिहाई (66.0 प्रतिशत) छात्र सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर 30.1 प्रतिशत है। देश भर में 31.9 प्रतिशत छात्र निजी गैर-सहायता प्राप्त (मान्यता प्राप्त) स्कूलों में नामांकित हैं।
सर्वेक्षण स्कूली बच्चों की शिक्षा पर घरेलू खर्च को समझने के लिए किया गया। सर्वेक्षण में देश भर के 52,085 परिवारों और 57,742 छात्रों से डेटा एकत्र करने के लिए कंप्यूटर-सहायता प्राप्त व्यक्तिगत साक्षात्कार का उपयोग किया गया।
सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग एक-तिहाई छात्र (27.0 प्रतिशत) चालू शैक्षणिक वर्ष के दौरान निजी कोचिंग ले रहे थे या ले चुके थे। यह प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों (25.5 प्रतिशत) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (30.7 प्रतिशत) में अधिक आम थी।
इसके अनुसार शहरी क्षेत्रों में प्रति छात्र निजी कोचिंग पर औसत वार्षिक घरेलू व्यय (3,988 रुपये) है जो ग्रामीण क्षेत्रों (1,793 रुपये) की तुलना में अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया कि यह अंतर उच्च कक्षाओं के साथ बढ़ता जाता है।
शहरी क्षेत्रों में, उच्चतर माध्यमिक स्तर पर निजी कोचिंग पर खर्च की जाने वाली औसत राशि 9,950 रुपये है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 4,548 रुपये है। राष्ट्रीय स्तर पर, कक्षाओं के साथ कोचिंग की लागत भी बढ़ती जाती है।
सर्वेक्षण के अनुसार, प्री-प्राइमरी स्तर पर शिक्षा पर औसत खर्च 525 रुपये है, जो उच्चतर माध्यमिक स्तर पर बढ़कर 6,384 रुपये हो जाता है। 95% छात्रों ने बताया कि उनकी शिक्षा का खर्च उनके परिवार के सदस्य उठाते हैं।
यह प्रवृत्ति ग्रामीण (95.3 प्रतिशत) और शहरी (94.4 प्रतिशत) दोनों क्षेत्रों में समान रूप से देखी गई। भारत में, 1.2 प्रतिशत छात्रों ने बताया कि सरकारी छात्रवृत्तियां उनकी स्कूली शिक्षा के लिए धन का पहला प्रमुख स्रोत थीं।
एनएसएस द्वारा किया गया पिछला व्यापक शिक्षा सर्वेक्षण 75वां दौर (जुलाई 2017-जून 2018) में किया गया था। अधिकारियों ने हालांकि, स्पष्ट किया कि इसके निष्कर्षों की तुलना वर्तमान सर्वेक्षण के निष्कर्षों से सीधे तौर पर नहीं की जा सकती।
सर्वेक्षण के अनुसार, इस वर्ष छात्रों ने सबसे अधिक खर्च फ़ीस पर किया, जो औसतन 7,111 रुपये रहा। इसके बाद किताबों, कॉपियों और स्टेशनरी पर लगभग 2,002 रुपये खर्च हुए। शहरी परिवार इन सब चीज़ों पर ग्रामीण परिवारों की तुलना में ज़्यादा खर्च कर रहे हैं।
गौरतलब है कि शहरों में फीस पर औसतन 15,143 रुपये खर्च होते हैं, जबकि गांवों में यह राशि लगभग 3,979 रुपये है। शहरों में परिवहन, यूनिफॉर्म और किताबों जैसी अन्य ज़रूरतों पर भी इतना ही ज़्यादा खर्च देखा गया।
इन शिक्षकों की सूची आज यानी 26 अगस्त 2025 को जारी की गई। चयनित शिक्षकों को 5 सितंबर 2025 को शिक्षक दिवस के अवसर पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सम्मानित किया जाएगा।
Santosh Kumar