शिक्षकों को सम्मानजनक पारिश्रमिक न देने से देश में ज्ञान का महत्व घट जाता है - याचिका पर फैसला सुनाते हुए एससी
Press Trust of India | August 23, 2025 | 10:43 AM IST | 2 mins read
पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के दो निर्णयों के खिलाफ दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिनमें समान कार्य करने वाले सहायक प्राध्यापक के साथ वेतन में समानता का दावा भी शामिल था।
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (SC) ने कहा कि शिक्षकों को सम्मानजनक पारिश्रमिक नहीं देने से देश में ज्ञान का महत्व घट जाता है और बौद्धिक पूंजी निर्माण का दायित्व जिन लोगों को सौंपा गया है, उनकी प्रेरणा कमतर हो जाती है। पीठ ने गुजरात एससी के निर्णय के खिलाफ दायर याचिक पर फैसला सुनाते हुए कहा कि, संविदा पर नियुक्त कुछ सहायक प्राध्यापक स्वीकार्य न्यूनतम वेतनमान के हकदार होंगे।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने शिक्षाविदों, व्याख्याताओं और प्राध्यापकों को किसी भी राष्ट्र की ‘‘बौद्धिक रीढ़’’ करार दिया, जो ‘‘भविष्य की पीढ़ियों के मन और चरित्र को आकार देने’’ में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं।
समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांतों को लागू करते हुए, पीठ ने निर्देश दिया कि गुजरात में संविदा पर नियुक्त कुछ सहायक प्राध्यापक स्वीकार्य न्यूनतम वेतनमान के हकदार होंगे। पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के दो निर्णयों के खिलाफ दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिनमें समान कार्य करने वाले सहायक प्राध्यापक के साथ वेतन में समानता का दावा भी शामिल था।
न्यायालय ने कहा, ‘‘जब शिक्षकों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार नहीं किया जाता या उन्हें सम्मानजनक पारिश्रमिक नहीं दिया जाता, तो इससे देश में ज्ञान का महत्व घट जाता है और उन लोगों की प्रेरणा कमतर हो जाती है, जिन्हें इसकी बौद्धिक पूंजी के निर्माण का दायित्व सौंपा गया है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि सार्वजनिक समारोहों में केवल संस्कृत मंत्र ‘‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः’’ का पाठ करना ही पर्याप्त नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘अगर हम इस घोषणा में विश्वास करते हैं, तो यह राष्ट्र द्वारा अपने शिक्षकों के साथ किए जाने वाले व्यवहार में भी परिलक्षित होना चाहिए।’’
शीर्ष अदालत ने शिक्षकों के साथ किए जा रहे व्यवहार पर ‘‘गंभीर चिंता’’ व्यक्त की। पीठ ने कहा, ‘‘हमें सूचित किया गया है कि स्वीकृत 2,720 पदों में से केवल 923 पद ही नियमित रूप से नियुक्त कर्मचारियों से भरे गए हैं। इस कमी को दूर करने और शैक्षणिक गतिविधियों की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए, राज्य सरकार ने तदर्थ और संविदात्मक नियुक्तियों का सहारा लिया है।’’
न्यायालय ने कहा कि यह चिंताजनक है कि संविदा सहायक प्रोफेसरों को 30,000 रुपए मासिक वेतन मिल रहा है। पीठ ने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर गौर करे और उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के आधार पर वेतन संरचना को युक्तिसंगत बनाए।’’
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