UP News: यूपी के प्राथमिक विद्यालयों के विलय पर रोक लगाने की मांग वाली दोनों याचिकाएं हाईकोर्ट ने की खारिज

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले 51 बच्चों समेत एक अन्य याचिका पर यह फैसला सुनाया।

सरकार ने कहा कि विद्यालयों का विलय छात्रों के व्यापक हित में है। (इमेज -सोशल मीडिया)
सरकार ने कहा कि विद्यालयों का विलय छात्रों के व्यापक हित में है। (इमेज -सोशल मीडिया)

Saurabh Pandey | July 7, 2025 | 04:36 PM IST

नई दिल्ली : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सोमवार को उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के विलय पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की सिंगल पीठ ने 4 जुलाई को दो दिवसीय सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सीतापुर के 51 छात्रों की ओर से एक अभिभावक ने विलय के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि यह उनके मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने कहा कि विलय से उन छात्रों को परेशानी होगी जिन्हें अब अपने नए स्कूलों में जाने के लिए दूर जाना पड़ेगा।

सरकार ने कहा छात्रों के हित में विद्यालयों का विलय

सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल एडवोकेट अनुज कुदेसिया और मुख्य स्थायी वकील शैलेंद्र कुमार सिंह ने इस कदम को उचित ठहराते हुए कहा कि कुछ प्राथमिक विद्यालयों में शून्य और अन्य में 15 से भी कम छात्र हैं।

सरकार ने कहा कि विद्यालयों का विलय छात्रों के व्यापक हित में है। इसने कहा कि कुछ विद्यार्थियों वाले विद्यालय से 300 विद्यार्थियों वाले विद्यालय में स्थानांतरित होने वाले छात्रों के लिए बेहतर अवसर होंगे।

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याचिकाकर्ता के वकील ने कहा-

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एल.पी. मिश्रा ने तर्क दिया कि विलय के लिए राज्य सरकार के 16 जून के आदेश ने संविधान के अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन किया है, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार और 300 की आबादी वाले गांव के लिए एक किलोमीटर के भीतर एक विद्यालय की गारंटी देता है।

मामले की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध की मांग खारिज

सुनवाई के दौरान, कुदेसिया ने अदालत से मामले की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया, यह दावा करते हुए कि चल रही कवरेज "सरकारी वकीलों की छवि को खराब कर रही है।" हालांकि, न्यायमूर्ति भाटिया ने इस मांग को खारिज कर दिया और कहा कि सरकार चाहे तो इस संबंध में कानून बना सकती है, लेकिन अदालत ऐसा आदेश जारी नहीं करेगी।

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