शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या मामलों पर दिशानिर्देश लागू करने के बारे में बताएं राज्य, सुप्रीम कोर्ट का आदेश

Press Trust of India | October 27, 2025 | 06:57 PM IST | 3 mins read

पीठ ने केंद्र को इन दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए एक अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के लिए 8 सप्ताह का समय भी दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में निर्धारित की है। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)
सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में निर्धारित की है। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और आत्महत्या के मामलों से निपटने के लिए निर्धारित दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के बारे में 8 सप्ताह के भीतर उसे सूचित करने को कहा। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र को इन दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए एक अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के लिए 8 सप्ताह का समय भी दिया।

यह पीठ 25 जुलाई के अपने फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुपालन से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी। उस फैसले में, शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश, जहां तक संभव हो, दो महीने के भीतर सभी निजी कोचिंग केंद्रों के लिए पंजीकरण, छात्र सुरक्षा मानदंड और शिकायत निवारण तंत्र अनिवार्य करने वाले नियम अधिसूचित करें।

कोर्ट द्वारा अखिल भारतीय दिशानिर्देश जारी

सोमवार को सुनवाई के दौरान, पीठ को बताया गया कि जुलाई के फैसले में, केंद्र को 90 दिनों के भीतर अदालत के समक्ष अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया था। पीठ ने निर्देश दिया कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में प्रतिवादी बनाया जाए और वे आठ सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं। मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में करना तय किया गया।

शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, उच्चतम न्यायालय ने छात्रों को प्रभावित करने वाले मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीरता पर ध्यान देने पर जोर दिया और इससे निपटने के लिए अखिल भारतीय दिशानिर्देश जारी किए। न्यायालय ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों, कोचिंग केंद्रों और छात्र-केंद्रित वातावरण में छात्रों की आत्महत्या की रोकथाम के लिए एक एकीकृत, लागू करने योग्य ढांचे के संबंध में देश में ‘विधायी और नियामक शून्यता’ बनी हुई है।

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एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनाएं

पीठ ने 15 दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि ये तब तक लागू रहेंगे और बाध्यकारी रहेंगे जब तक कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा उपयुक्त कानून या नियामक ढांचा लागू नहीं कर दिया जाता। न्यायालय ने कहा था कि सभी शैक्षणिक संस्थान 'उम्मीद' मसौदा दिशानिर्देशों, 'मनोदर्पण' पहल और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति से प्रेरणा लेते हुए एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनाएंगे और उसे लागू करेंगे।

पीठ ने कहा था, ‘‘इस नीति की वार्षिक समीक्षा की जाएगी और इसे अद्यतन किया जाएगा। इसे संस्थागत वेबसाइटों और संस्थानों के नोटिस बोर्ड पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा।’’ उसने कहा था कि केंद्र ने अब तक स्थिति की जांच और सुधार के लिए कई निवारक कदम उठाए हैं और स्कूल स्तर पर, छात्र आत्महत्या की रोकथाम के लिए 'उम्मीद' मसौदा दिशानिर्देश शिक्षा मंत्रालय द्वारा 2023 में जारी किए गए थे।

पीठ ने इस बात का संज्ञान लिया कि व्यापक पहुंच के लिए, शिक्षा मंत्रालय ने कोविड-19 महामारी और उसके बाद छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए 'मनोदर्पण' शुरू किया था। 25 जुलाई का फैसला आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ अपील पर आया था, जिसमें विशाखापत्तनम में तैयारी कर रहे 17 वर्षीय राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा के अभ्यर्थी की अप्राकृतिक मौत की जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने की याचिका को खारिज कर दिया गया था।

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