Press Trust of India | December 6, 2025 | 01:42 PM IST | 3 mins read
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में बच्चों के खिलाफ 70,000 यौन अपराधों सहित 1.77 लाख अपराध होते हैं।

नई दिल्ली: राज्यसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण की जरूरत पर बल दिया। वहीं, भाजपा सदस्य अनिल सुखदेवराव बोंडे ने जागरूकता बढ़ाने के लिए स्कूलों में ‘सुरक्षित बचपन’ पाठ्यक्रम लागू करने की मांग की। बोंडे ने यह राय राकांपा-एसपी सदस्य फौजिया खान के निजी विधेयक यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2024 पर उच्च सदन में हुई चर्चा में भाग लेते हुए व्यक्त की।
उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि भारत में बच्चों के खिलाफ 70,000 यौन अपराधों सहित 1.77 लाख अपराध होते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ये केवल आंकड़े नहीं हैं। ये टूटा हुआ बचपन है। ये क्षतिग्रस्त भविष्य है।’’ देश भर में बाल शोषण और उनके यौन शोषण पर रोक के लिए उन्होंने कुछ नीतिगत सुझाव दिए।
सुखदेवराव बोंडे ने बच्चों के यौन शोषण के मामलों की सुनवाई पूरी करने के लिए साल भर की समय-सीमा तय करने की भी मांग की। उन्होंने पुलिस, शिक्षकों, धार्मिक नेताओं और सामुदायिक नेताओं के लिए प्रशिक्षण का भी सुझाव दिया।
माकपा के जॉन ब्रिटास ने कहा कि मूल कानून 2012 में लागू हुआ था और इसमें विभिन्न बातों के अलावा त्वरित न्याय की बात की गई थी लेकिन ऐसी विशेष अदालतों में एक लाख से भी अधिक मामले लंबित हैं। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उसे स्वास्थ्य, बच्चों की सुरक्षा जैसे मदों में अधिक राशि खर्च करने की जरूरत है। उन्होंने इस संबंध में जागरूकता फैलाए जाने पर जोर दिया और कहा कि 70-80 प्रतिशत मामले सामने नहीं आते।
भाजपा के अजीत गोपछड़े ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा संवेदनशील विषय है और सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। उन्होंने कहा कि सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कई कदम उठाए हैं। उन्होंने मूल कानून के दुरूपयोग को लेकर चिंता भी जताई। भाकपा सदस्य संदोष कुमार पी ने विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों का समर्थन करते हुए कहा कि मौजूदा समस्या पर काबू के लिए यह अहम है।उन्होंने कहा कि कानून का दुरुपयोग होना भी चिंता की बात है, खासकर वैवाहिक मामलों में कई बार ऐसा देखा गया है।
उनकी ही पार्टी के बृजलाल ने कहा कि इस समस्या पर काबू पाने के लिए कानून का पालन महत्वपूर्ण है। प्रस्तावित संशोधनों से असहमति जताते हुए उन्होंने कहा कि कानून के मौजूद प्रावधान पर्याप्त हैं। उन्होंने कानून के प्रभावी कार्यान्वयन पर बल देते हुए कहा कि अभिभावकों की भी जिम्मदारी है कि वे अपने बच्चों पर नजर रखें।
भाजपा के ही भीम सिंह ने विधेयक का विरोध किया और कहा कि मौजूदा कानून पर्याप्त हैं। उन्होंने विधेयक को ‘‘समय की बर्बादी’’ करार देते हुए कहा कि सरकार समय-समय पर संशोधन करती रहती है और नए नियम बनाए जाते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) की सदस्य स्वाति मालीवाल ने विधेयक को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि प्रस्तावित प्रावधान प्रगतिशील हैं।
चर्चा में सदस्यों ने पारपंरिक पारिवारिक ढांचा और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की जरूरत पर भी बल दिया और कहा कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों को भी सतर्क रहने की जरूरत है। बच्चों द्वारा मोबाइल फोन के अति उपयोग को लेकर भी सदस्यों ने चिंता जतायी। निजी विधेयक पर चर्चा अधूरी रही।