वर्ष 2022-23 तक, ग्रेड 1-8 के लिए 16 प्रतिशत शिक्षण पद खाली थे। इनमें झारखंड (40 प्रतिशत), बिहार (32 प्रतिशत), मिजोरम (30 प्रतिशत) और त्रिपुरा (26 प्रतिशत) में रिक्तियां काफी अधिक थीं।
Press Trust of India | February 25, 2025 | 10:25 PM IST
नई दिल्ली : थिंक-टैंक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के एक एनालिसिस के अनुसार, देश भर में कम से कम 35 प्रतिशत स्कूलों में 50 या उससे कम छात्र नामांकित हैं और उनके पास केवल एक या दो शिक्षक हैं। नीति आयोग के अनुसार, भारत के 36 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में 50 से कम छात्र थे और लगभग 10 प्रतिशत में 20 से कम छात्र थे।
मंगलवार को जारी एनालिसिस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन स्कूलों में सिर्फ एक या दो शिक्षक थे। छोटे स्कूल, जिनमें आमतौर पर कुछ शिक्षक होते हैं, कई समस्याएं पेश करते हैं। एनईपी (2020) के अनुसार, इसके कारण शिक्षकों को कई ग्रेड और विषयों को पढ़ाना पड़ता है, जिसमें वे विषय भी शामिल हैं, जिनमें वे पर्याप्त रूप से योग्य नहीं हो सकते हैं।
इसके अलावा, शिक्षक अपने समय का एक बड़ा हिस्सा प्रशासनिक कार्यों में बिताते हैं, जिससे शिक्षण के घंटे प्रभावित होते हैं। एनईपी में कहा गया है कि छोटे और अलग-थलग स्कूलों का प्रबंधन करना मुश्किल है। उनके पास प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों जैसे बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की भी कमी है।
वर्ष 2022-23 तक, ग्रेड 1-8 के लिए 16 प्रतिशत शिक्षण पद खाली थे। इनमें झारखंड (40 प्रतिशत), बिहार (32 प्रतिशत), मिजोरम (30 प्रतिशत) और त्रिपुरा (26 प्रतिशत) में रिक्तियां काफी अधिक थीं।
शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल पर स्थायी समिति (2023) ने राज्यों द्वारा शिक्षक भर्ती में तेजी लाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और भर्ती में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को एक स्वायत्त शिक्षक भर्ती बोर्ड बनाने की सिफारिश की।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2023-24 तक, प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक के लगभग 12 प्रतिशत शिक्षकों के पास पेशेवर शिक्षण योग्यता का अभाव था। शिक्षा मंत्रालय (2023-24) के अनुसार, पूर्व-प्राथमिक स्तर पर 48 प्रतिशत शिक्षक अयोग्य थे।