ट्रांसजेंडर-समावेशी स्कूली पाठ्यपुस्तक संबंधी याचिका पर केंद्र को एससी ने भेजा नोटिस, 8 सप्ताह में मांगा जवाब

Press Trust of India | September 1, 2025 | 07:33 PM IST | 2 mins read

कक्षा 12वीं की छात्रा साहा द्वारा दायर जनहित याचिका में एनसीईआरटी और राज्य शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) द्वारा तैयार स्कूली पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में ट्रांसजेंडर-समावेशी सीएसई को शामिल करने का आग्रह किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र, एनसीईआरटी और महाराष्ट्र समेत 6 राज्यों से जनहित याचिका पर जवाब मांगा। (स्त्रोत-आधिकारिक वेबसाइट/एससी)
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र, एनसीईआरटी और महाराष्ट्र समेत 6 राज्यों से जनहित याचिका पर जवाब मांगा। (स्त्रोत-आधिकारिक वेबसाइट/एससी)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (SC) ने 1 सितंबर को केंद्र, एनसीईआरटी और महाराष्ट्र समेत 6 राज्यों से उस जनहित याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें स्कूली पाठ्यक्रम में ट्रांसजेंडर-समावेशी व्यापक यौन शिक्षा (सीएसई) को शामिल करने का अनुरोध किया गया है। प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन की दलीलों पर गौर किया और प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर 8 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।

केंद्र और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के अलावा, याचिकाकर्ता काव्या मुखर्जी साहा ने याचिका में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक को पक्षकार बनाया। 12वीं कक्षा की छात्रा साहा द्वारा दायर जनहित याचिका में एनसीईआरटी और राज्य शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) द्वारा तैयार स्कूली पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में ट्रांसजेंडर-समावेशी सीएसई को शामिल करने का आग्रह किया गया था।

याचिका में कहा गया है कि एनसीईआरटी और अधिकांश एससीईआरटी ने ‘नालसा बनाम भारत संघ’ मामले में शीर्ष अदालत के बाध्यकारी निर्देशों का पालन नहीं किया है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 2(डी) और 13 के तहत वैधानिक दायित्वों के बावजूद, परिषदों ने कथित तौर पर लैंगिक पहचान, लैंगिक विविधता और ‘सेक्स’ व ‘जेंडर’ के बीच भेद पर संरचित और परीक्षा योग्य सामग्री को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की उपेक्षा की।

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महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक में की गई पाठ्यपुस्तक समीक्षाओं में कथित तौर पर प्रणालीगत चूकें सामने आईं, जिनमें केरल आंशिक अपवाद था। इसमें कहा गया है कि यह बहिष्कार न केवल समानता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को भी कमजोर करता है।

आगे कहा गया है कि यूनेस्को और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित लैंगिकता शिक्षा पर अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मार्गदर्शन, सीएसई के लिए विश्व स्तर पर स्वीकृत ढांचा प्रदान करता है।

याचिका में अधिकारियों को देश भर के परीक्षा योग्य स्कूली पाठ्यक्रम में ‘वैज्ञानिक रूप से सटीक, आयु-उपयुक्त’ और ट्रांसजेंडर-समावेशी सीएसई को शामिल करने का निर्देश देने की मांग की गई है। इसमें भारत के सभी सार्वजनिक और निजी शैक्षणिक संस्थानों में लिंग संवेदीकरण और ट्रांसजेंडर-समावेशी यौन शिक्षा के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए बाध्यकारी दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।

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