PSU Employee News: एससी-एसटी श्रेणियों के तहत नौकरी पाने वाले पीएसयू कर्मचारियों के बचाव में आया सुप्रीम कोर्ट

एससी ने कहा कि राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची में संशोधन का कोई अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए यह आदेश सुनाया है। (प्रतीकात्मक-फ्रीपिक)
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए यह आदेश सुनाया है। (प्रतीकात्मक-फ्रीपिक)

Press Trust of India | August 29, 2024 | 12:33 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC) ने केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कुछ उन कर्मचारियों को राहत दी, जिन्हें इस आधार पर नौकरी से निकाले जाने का खतरा है कि उनकी जातियों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था। लेकिन बाद में कर्नाटक सरकार ने उन्हें इस सूची से बाहर कर दिया।

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए कहा, ‘‘हम मानते हैं कि प्रतिवादी बैंकों/उपक्रमों द्वारा अपीलकर्ताओं को ‘‘कारण बताओ नोटिस’’ जारी करने की प्रस्तावित कार्रवाई कायम नहीं रखी जा सकती और इसे रद्द किया जाता है।’’

कारण बताओ नोटिस में यह पूछा गया था कि क्यों न उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएं। के. निर्मला समेत कोटेगारा अनुसूचित जाति और कुरुबा अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को उनके संबंधित नियोक्ताओं - केनरा बैंक, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा जारी नोटिस का जवाब देने के लिए कहा गया था।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के नियोक्ताओं ने कहा था कि इन कर्मचारियों की जातियां और जनजातियां अब अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए उन्हें उनकी नौकरियों में बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो उन्होंने आरक्षित श्रेणियों के तहत मिली थी।

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कई याचिकाओं पर निर्णय करते हुए पीठ ने कहा कि इनमें आम बात यह है कि क्या कोई व्यक्ति, जो कर्नाटक में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र के आधार पर किसी राष्ट्रीयकृत बैंक या भारत सरकार के उपक्रम में सेवा में शामिल हुआ हो, राज्य के निर्णय के अनुसार, जाति या जनजाति को सूची से हटा दिए जाने के बाद भी उस पद पर बने रहने का हकदार होगा।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अपीलकर्ता 29 मार्च, 2003 के सरकारी परिपत्र के आधार पर अपनी सेवाओं की सुरक्षा के हकदार हैं। कर्नाटक सरकार द्वारा 29 मार्च, 2003 को जारी परिपत्र में विशेष रूप से विभिन्न जातियों को संरक्षण प्रदान किया गया, जिनमें वे जातियां भी शामिल थीं जिन्हें 11 मार्च, 2002 के पूर्व सरकारी परिपत्र में शामिल नहीं किया गया था।’’

अदालत ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने अगस्त 2005 के एक पत्र में संबंधित बैंक कर्मचारियों को सुरक्षा कवच प्रदान किया था और उन्हें विभागीय और आपराधिक कार्रवाई से बचाया था।

आदेश में उस फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची में संशोधन या परिवर्तन करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अपीलकर्ता कर्मचारियों ने कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके अपने एससी और एसटी प्रमाण पत्र प्राप्त किए थे।

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