Santosh Kumar | October 20, 2025 | 11:35 AM IST | 2 mins read
पिछले 4 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, एनआईओएस प्रोजेक्ट के तहत केवल 30% छात्र ही परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और 70% असफल रहे।
नई दिल्ली: दिल्ली सरकार द्वारा 2017 में शुरू की गई "एनआईओएस प्रोजेक्ट" के तहत, पिछले 4 वर्षों में 10वीं कक्षा की परीक्षा देने वाले औसतन 70% छात्र फेल हुए हैं। दिल्ली शिक्षा निदेशालय ने यह जानकारी दी। यह योजना 9वीं और 10वीं कक्षा में फेल हुए या कमज़ोर छात्रों को एनआईओएस में पंजीकृत करके और स्कूल में अलग से कक्षाएं प्रदान करके उनकी मदद करने के लिए शुरू की गई थी।
शिक्षा निदेशालय से मिली जानकारी के मुताबिक, 2024 में ‘एनआईओएस प्रोजेक्ट’ के तहत 10वीं में 7794 बच्चों का पंजीकरण कराया गया था जिनमें से 37 फीसदी यानी 2842 बच्चे ही परीक्षा उत्तीर्ण कर सके।
निदेशालय ने बताया कि 2017 में 8,563, 2018 में 18,344, 2019 में 18,624, 2020 में 15,061, 2021 में 11,322, 2022 में 10,598 और 2023 में 29,436 बच्चों का पंजीकरण ‘एनआईओएस प्रोजेक्ट’ के तहत कराया गया था।
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, 2017 में 3748, 2018 में 12,096, 2019 में 17,737, 2020 में 14,995, 2021 में 2760, 2022 में 3480 और 2023 में 7658 विद्यार्थी ही परीक्षा उत्तीर्ण कर सके।
पिछले 4 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, इस प्रोजेक्ट के तहत केवल 30% छात्र ही परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और 70% असफल रहे। इस योजना के तहत छात्रों का पंजीकरण संबंधित स्कूलों के प्रधानाचार्यों द्वारा किया जाता है।
दिल्ली के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "'एनआईओएस प्रोजेक्ट' से जुड़े शिक्षक पंजीकृत बच्चों के अभिभावकों से संपर्क नहीं करते और न ही उन्हें यह बताते हैं कि बच्चा स्कूल आ रहा है या नहीं।"
उन्होंने दूसरा कारण बताते हुए कहा कि ‘एनआईओएस प्रोजेक्ट’से जुड़े बच्चों को स्कूल में वह वातावरण नहीं मिला पाता जो दूसरे बच्चों का मिलता है। उनका आरोप था कि शिक्षक कक्षाओं में नहीं जाते।”
उन्होंने बताया कि प्रधानाचार्य अपने स्कूल की 10वीं कक्षा का परिणाम सुधारने के मकसद से पढ़ाई में कमजोर बच्चों का पंजीकरण एनआईओएस में करा देते हैं, जिसकी वजह से ये बच्चे दूसरे विद्यार्थियों से पढ़ाई में अलग हो जाते हैं।
‘ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष ने कहा कि सरकारी स्कूल 10वीं के नतीजे बेहतर दिखाने के लिए गरीब और कमजोर बच्चों को एनआईओएस भेज देते हैं, जहां सीबीएसई की तुलना में बहुत कमजोर स्तर का पाठ्यक्रम होता है।
अग्रवाल ने कहा कि बच्चे पास होने के बाद भी 11वीं में सिर्फ कला संकाय में ही दाखिला ले सकते हैं और ‘एनआईओएस प्रोजेक्ट’ बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। डीओई के उप निदेशक से कई बार प्रयास किए जाने के बावजूद संपर्क नहीं हो सका।