छात्र संघ के पदाधिकारी जुबैर रेशी ने कहा, “इस आदेश ने उन विद्वानों की पहले से ही चिंताजनक स्थिति को और बढ़ा दिया है, जिनका शोध कार्य पिछले दो वर्षों में कोविड-19 के कारण काफी प्रभावित हुआ है।"
Press Trust of India | July 27, 2024 | 04:19 PM IST
नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) परिसर में पीएचडी छात्रों सहित सभी छात्रावासों को खाली कराने के प्रशासन के फैसले के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है। प्रशासन के इस फैसले में पीएचडी स्कॉलर सहित सभी छात्रों को छात्रावास छोड़ने को कहा गया है, जिसमें वे छात्र भी शामिल हैं जिन्होंने अभी तक अपनी डॉक्टरेट की मौखिक परीक्षा नहीं दी है।
एएमयू में पीएचडी स्कॉलर और जम्मू-कश्मीर छात्र संघ के पदाधिकारी जुबैर रेशी ने कहा, “इस आदेश ने उन विद्वानों की पहले से ही चिंताजनक स्थिति को और बढ़ा दिया है, जिनका शोध कार्य पिछले दो वर्षों में कोविड-19 के कारण काफी प्रभावित हुआ है।"
उन्होंने आगे कहा कि छात्र अपनी पढ़ाई को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन को इन कठिनाइयों को समझना चाहिए और खासकर जम्मू-कश्मीर की छात्राओं के प्रति सहानुभूति दिखानी चाहिए।
संपर्क करने पर एएमयू प्रॉक्टर मोहम्मद वसीम अली ने किसी भी तरह की ज्यादती के आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने आज उन पीएचडी छात्रों के सभी वास्तविक मामलों की समीक्षा करने का फैसला किया है, जिन्होंने निर्धारित 5 वर्षों तक अपने शोध कार्य को गंभीरता से जारी रखा है।
एएमयू प्रॉक्टर ने कहा कि अगर कोई वास्तविक कारण है, तो उन्हें "निर्दिष्ट अवधि" के लिए आवास प्रदान किया जाएगा। हालांकि, उन्होंने कहा, "हम ऐसे सभी शोधकर्ताओं को पूरी तरह से अनुमति नहीं दे सकते हैं जो 5 साल की निर्धारित अवधि के दौरान अपना शोध पूरा करने में विफल रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि यदि किसी विद्यार्थी को अपनी पीएचडी थीसिस के लिए मौखिक (वाइवा) परीक्षा देनी है तो उसे भी छात्रावास खाली करना होगा और जब उसे वाइवा परीक्षा देनी होगी तो उस समय आवश्यक आवास उपलब्ध कराया जाएगा।