NEET PG 2025: सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों को काउंसलिंग से पहले फीस का खुलासा करना अनिवार्य किया

Press Trust of India | May 23, 2025 | 07:33 AM IST | 2 mins read

सभी निजी डीम्ड विश्वविद्यालयों के लिए काउंसलिंग से पहले ट्यूशन, छात्रावास, जमानत राशि और अन्य सभी खर्चों का विवरण देना अनिवार्य है।

एनबीईएमएस द्वारा नीट पीजी 2025 परीक्षा 15 जून को दो शिफ्ट में आयोजित की जाएगी। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)
एनबीईएमएस द्वारा नीट पीजी 2025 परीक्षा 15 जून को दो शिफ्ट में आयोजित की जाएगी। (प्रतीकात्मक-विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने स्नातकोत्तर मेडिकल प्रवेश में बड़े पैमाने पर सीट रोकने (ब्लॉक करने) के चलन पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी निजी और मानद (डीम्ड) विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा - स्नातकोत्तर (नीट-पीजी) के लिए काउंसलिंग से पूर्व शुल्क का खुलासा अनिवार्य कर दिया है।

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि सीट रोकने की गलत प्रथा से असली सीटों की संख्या गलत दिखती है, इससे छात्रों के बीच भेदभाव बढ़ता है और एडमिशन प्रक्रिया मेरिट के बजाय किस्मत पर निर्भर हो जाती है।

पीठ ने 29 अप्रैल के अपने आदेश में कहा, "सीटें आरक्षित करने की प्रथा न केवल गलत है, बल्कि यह व्यवस्था में पारदर्शिता और नीति की कमी को भी दर्शाती है। नियमों के बावजूद इसमें अभी भी सुधार की जरूरत है।"

NEET PG 2025: काउंसलिंग से पहले फीस की जानकारी

फैसले में कहा गया कि सही और बेहतर व्यवस्था के लिए सिर्फ नीतियां बदलना ही काफी नहीं है। इसके लिए संरचनात्मक समन्वय, तकनीकी आधुनिकीकरण और राज्य तथा केंद्र दोनों स्तरों पर मजबूत नियामक जवाबदेही की आवश्यकता होगी।

सभी निजी-डीम्ड विश्वविद्यालयों को काउंसलिंग से पहले ट्यूशन, हॉस्टल, कॉशन डिपॉजिट और अन्य सभी खर्चों की जानकारी देना अनिवार्य किया जाना चाहिए। एनएमसी के तहत एक केंद्रीय शुल्क नियंत्रण प्रणाली बनाई जानी चाहिए।

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NEET PG 2025: सीटें रोकने पर सख्त सजा का आदेश

पीठ ने अधिकारियों को सीटें अवरुद्ध करने के लिए कठोर दंड लगाने का आदेश दिया, जिसमें सुरक्षा जमा राशि जब्त करना, भविष्य में नीट पीजी परीक्षाओं से अयोग्य घोषित करना और दोषी कॉलेज को काली सूची में डालना शामिल है।

शीर्ष अदालत का फैसला उत्तर प्रदेश सरकार और चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशक, लखनऊ द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 2018 में पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी।

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